Sunday 15 March 2015

बन्दर जैसे फूल

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हमारे चारों तरफ खूबसूरत और अनोखे नजारों की कमीं नहीं है। प्रकृति अपने करिशमाई अन्दाज में अपने नये नये कारनामें हमें दिखाती रहती है कही ऊचे ऊचे पहाड तो कही पर हिलोरे लेता समन्दर इन्ही सब चीजों में शामिल है अनोखे फूल पौध्ेा और सुई की नोक की तरह पत्तियों से लेकर केले के चैरस पत्ते। छोटे - छोटे खूबसूरत फूलो से बडे फूल यहां तक घडों की तरह दिखाई देने वाले फूल। इन्हीं सब में एक और करिश्मा शामिल है बन्दरों की सूरत से मिलने वाले फूल।
वैसे तो यकीन ही नहीं आता कि क्या फूल भी बन्दरों की तरह हो सकते हैं? क्योंकि हमलोग जो कुछ भी पढ रहें है समझ रहें है उनमें इनका जिक्र तो आता ही नहीं है। हकीकत यह है कि बन्दरों की सूरत वाले इन फूलों को सबसे पहले सौ साल पहले  साइसदान हेनरी केस्टेरटन

Henry Chesterton (1840-1883) जो आर्किड पर रिसर्च कर रहे थे पहचाना लेकिन काम के बीच में ही अचानक उनकी मौत होने के बाद इस आर्किड का नाम ड्रैकुला केस्टेरटनी रखा गया। लेकिन इस वक्त तक बहुत ज्यादा डैªकुला आर्किडं की पहचान न होने की वजह से इनका अलग ग्रुप नहीं बनाया गया और इन्हे मसडीवैलियस ग्रप कें साथ रख दिया गया। लेकिन 1978 तक इसके तादाद में बढोत्तरी होने की वजह से  साइंसदान लुएर ने बताया  कि  यह चमगादड  राक्षस जैसे शक्ल के दिखते है। जो कि 2 सेमी से 12 सेमी तक के हो सकते हैं। इसलिये 1978 में लुएर ने इन फूलों को पहली बार नाम दिया डैकुला आर्किड। डैकुला आर्किड ग्रुप में अब तक लगभग 123 तरीके पाया गया। अलग-अलग दिखने की वजह से इनको अलग नाम दिये गये।
इन फूलों की फोटो खींचने वाले है ईरेकिया शुल्ज जिसकी उम्र 57 साल है और जो एक शौकिया फोटोग्राफर है। जिन्होंने जर्मनी के एक पुष्प प्रदशर्नी के दौरान हेरेनहाउसेन के बगीचे में इन फोटो को खीचा। शुल्ज ने कैटर न्यूज एजेन्सी को बताया कि इन फूलों को देखने के बाद भी मै यह यकीन नहीं कर पा रहा था कि यह फूल बन्दरों से कितने मिलते हैं और कितने अलग और खूबसूरत हैं। जिन्हें भी मैं इन तस्वीरों को दिखाता वह भी मेरी ही तरह चमत्कृत हो जाता था।
यह सच है कि आर्किड की एक प्रकार के फूल देखने मे बिल्कुल ही बन्दर जैसे दिखाई देते हैं। और यह एक ही तरह के नहीं है बल्कि कई तरह के हैं। अब सवाल यह है कि अगर इस प्रकार के कोई फूल है तो यह है कहां? इस फूल का नाम  ड्रैकुला सीमिया  है  यह 1000 से 2000 मीटर की ऊचाई पर दक्षिणी पूर्वी इक्वेडोर कोलम्बिया और पेरू के जंगलो में पाया जाता है। और मजेदार बात यह है कि तारीख  में अभी तक लोगों ने इस खास फूलों को न तो देखा था और न ही इसके बारे में कहीं भी जिक्र मिला या फिर हमारे  घुमन्तुओं ने इसे इस लायक ही नहीं समझा कि इसके बारे में कहीं लिखा जाये। 
     लेकिन यह पौध्े खास तौर पर ऊॅची जगहों के जंगलों में पाये जाते है। हालांकि इसको नाम देने के लिये काफी मशक्कत भी नहीं करनी पडी इसकी शक्ल को देखते हुये इसका नाम बन्दर आर्किड रख दिया गया। इसकी महक पके हुये संतरों की तरह होती है और यह इक्वाडोर के सभी मौसम में मिलते है। लैटिन में ड्रैकुला का मतलब होता है छोटा डैगन। यह आर्किड पेडों की शाखाओं पर और जमीन पर कुडे के ढेर पर बढते हैं। नीचे की ओर लटकता हुआ स्पाइक बाद में फूल में बदल जाता है। ज्यादातर एक स्पाइक से एक फूल बनता है जो कि कुछ दिनों तक रहता है। यह हवा में नमी को सोखता है जिसकी वजह से इसमें सडान्ध् नहीं होती है।
    ग्ुाच्छे दार तिकोनी पंखुडियों पर एक लम्बी पंूछ दिखती हैं। ड्रैकुला आर्किड की जबाननुमा हिस्से में एक खास गंध् होती है जो फ्रूट फलाई को अपनी तरफ खंीचती और यही छोटे पतिंगे इनके परागण में सहायता करते हैं। ड्रैकुला आर्किड की पुखुडियां छोटी होती है लेकिन इसके लेबिला काफी लम्बा होता है जो कि मशरूम की तरह हिलता रहता है इसके हिलते समय लगता है कि यह आपको जबान चिढा रही है। ड्रैकुला आर्किड ज्यादातर उन्हीं जगहो पर ही पाया जाता है जहां पर दिन का तापमान 13-26 सेग्रे के बीच और रात का 4-12 सेग्रे के बीच होता है। आमतौर पर ऊचीं जगहों के पौधे कम गर्मी में ही उगते हैं। यह फूल न्यूजीलैण्ड के नेपियर में गर्मी में भी उग सकते हैं। क्योकि वहां का गर्मी इनके लिये बेहतर होता है और रात और दिन के गर्मी में 4-5 सेग्रे का अन्तर होता है।
    ड्रैकुला आर्किड में पानी सोखने की खासियत की कमीं  होती है इसलिये पानी की कमंी में यह जल्दी सूखने लग जाते हैं। मौसम की नमीं इन्हे ताजा रहने में मदद करती है। बदल वनों में नमीं बहुत ज्यादा होती है। इसलिये यह फूल 70-90 प्रतिशत नमीं  वाले हिस्से में पनपते हैं। अनूकूल मौसम वाले हिस्सों में इन पौधे को गमलो में भी लगाया जा सकता है। चूंिक इन पौधें के फूलों की शाखायें ज्यादातर नीचे की ओर झुकतीं है इसलिये ऊचांई पर टंगे हुये डलियों में इनको लगाया जा सकता है। जिनके तले में लकडियों के छोटे टुकडों को डालना अच्छा होगा।
इन फूलों को बहुत ही थोडी सीं खाद की जरूरत होती है ज्यादा खाद डालने से इनका रंग काला पड़ जाता है। अमूमल हर दूसरे साल इन पौधें के बर्तनो को बदल देना चाहिये वरना इसके बीच के पत्ते सडने लगते है। इनके राईजोम वाली पत्तियंा जिनमें  जडे़ हो काटकर एक जगह से दूसरे बर्तन में लगाया जा सकता है जिनमें नमीं सोखने के लिये लकडी के छोटे टुकडे डाले जा सकते हैं।



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