Wednesday 23 August 2017

स्वागत योग्य निर्णय ! सफर अभी बाकी है.....


तीन तलाक के विरोध में 22 अगस्त 2017 के एतिहासिक दिन माना जा रहा है जबकि क्या वास्तव में यह एतिहासिक दिन है। बात जब अधिकार और समानता कि है तो मुद्दों पर पूरी तरह से नजर डालना होगा। कुरान और हदीस मे तीन तलाक का कही भी जिक्र नहीं आता है जबकि तलाक के लिये एक विस्तृत प्रकिया सूरह बकर कुरान की पहली सूरह मे है। जो कि किसी भी महिला और पुरूष के सम्बन्ध को विच्छेद करने के लिये पर्याप्त समय देता है जो कि लगभग छ माह का समय है। जिसके कुछ सख्त नियम है जैसे इस समयावधि मे पति पत्नी के बीच किसी भी प्रकार सम्बन्ध नहीं होगें। महिला इस दौरान अगर अपने पति के घर मेे रहती है तो उसके साथ किसी भी प्रकार का गलत व्यवहार नहीं किया जा सकता है। सम्भवतः यह सम्यावधि उन बिखरते रिश्तों से बेहतर है जो महिला को बिना कोई दोष बतायें उसके माता पिता के घर में  छोड दें या फिर कोर्ट में लम्बे समय तक अलग होने का केस चले जिससे महिला के लिये आगे बढने के विकल्पों पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे। इस फैसले में प्वांट 56 और 57 में भी माना गया है कि एक साथ तीन बार तलाक बोलने से तलाक नहीं होगा।

तलाक का डिटेल फिल्म निकाह से लिया जाता है जबकि ध्यान रखने की बात यह है कि फिल्म सिर्फ तीन घंटे होती है।

इस्लाम में जहेज यानि कि लडकी के माता पिता के घर से मिलने वाली सामग्री का जिक्र हदीस मे इस प्रकार है कि हजरत मोहम्मद सलल्लाहो ऐलहे वस्सलम ने अपनी बेटी हजरत फातिमा जहरा को घरेलू इस्तेमाल कह कुछ चीजे दी थी जिन्हे हजरत अली जो कि हजरत फातिमा जहरा के पति थे की ढाल बेच कर खरीदा गया था। हदीस के आधार पर उक्त सामग्री जब लडके के घर से ही ली गई है। इसी लिये अलग होने के वक्त उसे लडकी उस सामान को हासिल नहीं कर सकती है। वहीं निकाह के समय तय किये गये महेर पर लडकी का पूरा अधिकार है।


सवाल बहुत है जिन के जवाब  ढूंढे तो पता चलेगा की बहुत कम ही लोग है जिनको इनके बारे में पता होता है । और इसके चक्कर में जयादातर वही लोग आते है जो निरक्षर है या फिर पढ़े लिखे तो है लेकिन कुरान और हदीस की रौशनी में चीजो को उतना ही समझ पाते जितना उन्हें बताया जाता है क्योंकि इसे उन्होंने अपनी भाषा में न तो पढा न ही जाना।  हजरत मुहम्मद सलल्लाहो ऐलहे वस्सलम ने फरमाया तलिबुल इल्मो फरीजतून अला कुल्ले मुसलमीन  यानि की इल्म की तलब हर मुसलमान पर फर्ज है । और इल्म के नाम पर सिर्फ बड़ी किताब यानि के कुरान पढ़ा के बेटी बिदा करना  ही मान लिया गया है लेकिन अगर सिर्फ इस किताब को भी मायनों के साथ पढ़ा दिया जाये तो शायद बेटियों को इस तरह के सवालो का सामना ही न करना पड़े। या फिर बहुत सी डिग्रिया हासिल कर ली लेकिन यहाँ भी कुरान पढ़ने के नाम पे सिर्फ अरबी में पढाई की ये कुरान क्या  कह रहा है इसको  अपनी भाषा में जानने की कोशिश  ही नहीं की। कुरान के नजरिये से देखे तो कुरान की पहली सूरह जो नाजिल हुई वह है सूरह अल अलख या इसे सूरह इकरा भी कहते हैं। जिसका मतलब है पढो! अपने ईश्वर का नाम ले के पढो।


अगर औरतों के हक की बात करते हैं तो औरतो को पढना ही होगा न सिर्फ कुरान बल्कि हर वह उदरण जो उनसे सम्बन्धित हो उसे समझना होगा और चर्चा करनी होगी जब तक उनके बारे में दूसरे फैसले लेगें और कानून बनायेगे समस्या वहीं रहेगी। औरतो को बराबरी का दर्जा देने के लिये बहुत से कानून है उस दर्जे को सिर्फ मुबारकबाद देकर नहीं हासिल कर सकेंगे उसके लिये लडना होगा। भले ही यह स्वागत योग्य निर्णय है लेकिन औरतों के लिये अपने हक के लिये बहुत आगे तक सफर तय करना होगा। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय हदीस के आधार पर है जिसमे यह जरूर माना गया है मौखिक को तलाक को तलाक नहीं माना जायेगा। इसलिये हमें इस निर्णय को पूरी तरह समझना होगा।

Wednesday 9 March 2016

लामबंदी किसके खिलाफ

जहाँ एक तरफ पूरा जहाँ अंतराष्ट्रीय महिला दिवस ८ मार्च  को मना रहा है वहीँ सोशल मीडिया पर आई दो खबरों ने सोचने पर मजबूर किया है कि आखिर कमी कहाँ है और बदलाव की ज़रुरत कहाँ है।

पहली खबर की मुस्लिम पर्सनल लॉ के  तीन तलाक़ के विरोध में लामबंद हुई सामाजिक कार्य कत्री । और दूसरी खबर की केरला के जस्टिस कमाल बी पाशा ने कहा की पर्सनल  लॉ के हिसाब से जब मर्द चार शादी कर सकते है तो महिला क्यों  नहीं ?

ये  दोनों ही खबरे अलग अलग किस्म के सवाल पैदा   करती है ।

 पहला सवाल  पर्सनल लॉ किसने और कब तैयार किया?
दूसरा सवाल  इसको तैयार करने में कितने आलिमो की  हिस्सेदारी है
 इसको तैयार करने में कितनी औरतो  की  हिस्सेदारी है
क़ुरान और हदीस के किन किन हिस्सों से सन्दर्भ लिए गए है
पर्सनल लॉ संविधान के सामान ही सामान्य लोगों तक क्यों नहीं पहुँच पाता ये तभी उजागर क्यों होता है जब कोई समस्या आती है और न्याय के नाम पे महिलाओ के लिए नए फतवे आ जाते है

इन सवालो के जवाब  ढूंढे तो पता चलेगा की बहुत काम ही लोग है जिनको इनके बारे में पता होता है । और इसके चक्कर में ज़यादातर वही लोग आते है जो निरक्षर है या फिर पढ़े लिखे तो है लेकिन क़ुरान और हदीस की रौशनी में चीज़ो को उतना ही समझ पाते जितना उन्हें बताया जाता है ।  हज़रत मुहम्मद सलल्लाहो ऐलहे वस्सलम ने फ़रमाया तलिबुल इल्मो फरीजातून अला कुल्ले मुसलमीन  यानि की इल्म की तालब हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है । और इल्म के नाम पर सिर्फ बड़ी किताब यानि के क़ुरान पढ़ा के बेटी बिदा करना  ही मान लिया गया है लेकिन अगर सिर्फ इस किताब को भी मायनों के साथ पढ़ा दिया जाये तो शायद बेटियों को इस तरह के सवालो का सामना ही न करना पड़े। या फिर बहुत सी डिग्रिया हासिल कर ली लेकिन यहाँ भी क़ुरान पढ़ने के नाम पे सिर्फ अरबी में पढाई की ये क़ुरान क्या  कह रहा है इसको  अपनी भाषा में जानने की कोशिश  ही नहीं की।

तलाक़ का डिटेल फिल्म निकाह नहीं बल्कि क़ुरान की सूरह बक़र में है और शादियों का मसला सूरह निसा में है उसी बीवी से फिर से निकाह करने की शर्ते सब क़ुरान में है फिर भी छोटी छोटी बातो के निकाह टूटने का फतवा जारी कर दिया जाता है और लोग उसको मानने लगते।  हर हाल में सवाल औरतो पे ही उठते है कभी फतवे के नाम पे या कभी पर्सनल लॉ के नाम पे।

ज़रूरी है हर सवाल को क़ुरान और हदीस के नज़रिये से परखा जाये फिर उस पर अपने विचार  रखे  जाएँ सिर्फ लाम बंदी करने या फिर चार शादिया कर लेने से औरतें मज़बूत नहीं होंगी उनको पढ़ना होगा सिर्फ  सतही नहीं बल्कि गहराई से जानना होगा की बुनियाद क्या है । लामबंदी करनी है तो जिहालत के खिलाफ करनी होगी  फतवे जारी करने वाले लोगों को क़ुरआन और हदीस का आइना दिखाना होगा तभी हम अपना स्तर सही बना पाएंगे ।



Tuesday 22 September 2015

Career advancement for dropout women in field of science and technology

Career advancement for dropout women in field of science and technology 
(In Indian Context) 

Introduction
¢   A career is an individual's journey through learning, work and other aspects of life. There are number of ways to define a career and the term is used in varied ways.
¢  Career is defined by the Oxford English Dictionary as a person's "course or progress through life (or a distinct portion of life)".
¢  In general, career includes all the learning throughout the life and earning through job course.
Forty eight percent of Indian women drop out before reaching mid-career (compared to the Asia average of 29 percent) due to various socio and psychological reasons. The main reason for career drop out may be expectations of domesticity. And this expectation starts right from her birth. At her maternal place she is expected to take care of her siblings and also she should shoulder the household responsibilities. At her in-laws place she is expected to be a great homemaker that includes all the household responsibilities. She must be a wonderful wife, mother and daughter-in law. If she fulfills all the above said requirements then only she can opt for her career. Many women are confined to their home only because they are considered to be ‘treasure’ of their family and are not allowed to move outside of their home. In some places there is safety issue also. If a woman gets a job opportunity she has to think hundred times whether that place is safe enough for her or not and she is expected to keep in mind her family responsibilities also. With this there are other related problems are domestic violence and sexual harassment at work places. If a family gets to know that the girl next door is being harassed at her work place they will not allow any of their female member to work outside. Women have to fight a lot to survive at their own terms and conditions.
Therefore, it is observed that the shortages in the supply of trained female professionals in disciplines related to Science, Technology, Engineering, and Mathematics (STEM) making weak innovation potential of the society. A wide gender gap has persisted over the years at all levels of STEM disciplines throughout the world. Although women have made important advances in their participation in higher education, they are still underrepresented in these fields.
The liberalized Indian economy has presented a report on the women professional status in the country:
¢  23 percent of employees in private industries,
¢   25 percent of employees at IT companies and
¢   50 percent of employees at BPO
¢   It is clear from the Bombay Stock Exchange 100 Companies how few women advance into leadership positions.
¢  According to another report, women represent only 19 percent of senior leadership positions and just 15 percent of the total employed population.
¢  Forty-two percent of the companies surveyed said they plan to hire more women, particularly into senior leadership positions.
This data is for regular employees only. There are few or no opportunities for the needy career drop out women specially of rural areas and that too in the field of Science and Technology.
Career opportunity if there are no options for further studies: women can do Freelance writing, translation, editing (language and specialized filed). A woman having command over any specific field and language can write for news papers, magazines and online journals. It is not necessary to write in English there are other regional language in which a person can write or edit. There are various media that may be fetched to get work.  
They can easily start their career with their own coaching institute or they can simply kick start their career by giving home tuitions.
Women can run hands-on Activity institutes where she can give training for computer course, typing and other technical activities. They can take government project for IT and give training for the same.
Women can make a self help group and work with micro-credits. It is also known as ‘self-help group’. They can start with small amount that they can pool and after six month or one year with that amount they can start some small scale venture. They can also join entrepreneur programme of DST and other organizations.
If they want to continue their studies they can go to distant education programme run by various universities. They can attend few classes and after that they can give examination to get degree or diploma.
Career opportunity in Academic area:  Women Scientist Scheme of various scientific organization e.g. DST, DBT, UGC viz.  Scholarship for Research in Basic/Applied Science (WOS-A), Scholarship for Research in S&T - based Societal Programs (WOS-B), Internship for the Self-Employment (WOS-C) KIRAN programme of DST govt. of India
There are various other projects sponsored by various educational institutes for further education.

Tuesday 15 September 2015

विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में पढाई बीच में छोड़ने वाली महिलाओं के लिए कैरियर सम्भावनाये

विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में पढाई बीच में छोड़ने वाली महिलाओं के लिए कैरियर  सम्भावनाये
वर्तमान समय में विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में महिलाये काफी अध्यन कर के अपना कैरियर निर्माण कर रही है वह चाहे वैज्ञानिक हो या फिर अनन्य तकनीकी कार्य| ऐसी स्थिति में कैरियर को बीच में छोड़ने वाली महिलाओं के लिए वापिस से मुख्य धारा में आकार पुनः आगे बढ़ना एक चुनौती होती है|  कैरियर: कैरियर को परिभाषित करने के विभिन्न तरीके हैं जैसे किसी व्यक्ति का उसके जीवन काल में कैरियर शिक्षा, काम और जीवन के अन्य पहलुओं के माध्यम से एक यात्रा है।
या फिर कैरियर ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार किसी  व्यक्ति के जीवन काल में "पाठ्यक्रम या प्रगति जीवन के माध्यम से (या जीवन का एक अलग हिस्सा)" के रूप में  जाना जाता है।
किन्तु ऐसा माना जाता है की किसी के जीवन काल में पढाई के बाद उसके धनार्जन के तरीके ही किसी व्यक्ति के कैरियर में आते है अर्थात धनार्जन का तरीका ही मुख्य रूप से कैरियर माना जाता है|

भारतीय महिलाओं में से 48 प्रतिशत (29 प्रतिशत की एशियाई औसत की तुलना में) मध्य कैरियर तक पहुँचने से पहले मुख्य धारा से बाहर हो जाती है जिसके कई कारण है ।

घरेलू उम्मीदें: वर्तमान समय में भले ही ये कहा जाता है की महिलाओं को घर के बाहर काम करने के लिए घर वालों का सहयोग प्राप्त है| भले ही आज के दिनों में घरो में कामकाजी महिलाओं घरो के बहार आने के लिए सहयोग किया जा रहा हो किन्तु यह सहयोग पर्याप्त रूप से अपेक्षित सहयोग नहीं है क्योंकि आज भी घर के सारे कामो की पूर्ण जिम्मेदारी महिलाओ की ही है साथ ही साथ सामाजिक जिम्मेदारियों का दायित्व निर्वहन भी महिलाओ को ही करना पड़ता है|

सुरक्षा: सामाजिक असुरक्षा की स्थिति बी महिलाओ के लिए सीमित रोज़गार के अवसर प्रदान करती है उनकी नेटवर्किंग सीमित होती है जो उनको बेहतर रोज़गार के अवसरों के लिए बाधा पहुंचाती है
सामाजिक-मनोवैज्ञानिक तनाव: महिलाओं पर सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक तनाव अत्यधिक होता है परिवार के दायित्वों को निभाते हुए सभी काम करना होता है जिनमे कुछ स्तर पर महिलाये घर परिवार समाज एवं अपने कार्यो के साथ तालमेल बैठने की कोशिश करती है भले ही आज परिवार का सहयोग हो लेकिन मनोवैज्ञानिक दबाव महिला का अकेले ही बर्दाश्त करना होता है|

शिक्षा: पूर्ण रूप से शिक्षित महिला का भी कई बार पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने में अमूल समय निकल जाता है ऐसी स्थिति में उनको उनकी योग्यता के अनुसार काम नहीं मिल पाता है जो की उनमे असंतोष की भावना को जनम देता है|

स्वास्थ्य: महिलओं की शारीरिक संरचना के अनुसार प्रतिमाह उनके लिए कुछ ख़ास दिन होते जब उनपर कम काम का बोझ होना चाहिए साथ ही बच्चों को जनम देना उनका पालन पोषण महिला के लिए विशेष अवसर होते है जो उसके स्वास्थ्य से जुड़े होते है और इस समय महिला को छूट की ज़रुरत होती है जो की घर एवं बाहर की ज़िम्मेदारी निभाते हुए उसे नहीं मिल पाती और उसे अपने कैरियर के साथ समझोता करना पड़ता है|

आर्थिक स्थिति: आज की मुख्य धारा से अलग महिलाये उस तबके की है जिन्होंने अपने बचपन में ख़राब आर्थिक स्थिति से जूझते हुए लिंग भेद को बहुत ही साफ़ तरीके से महसूस किया है आने वाली पीढ़ी को उस समस्या से बचाने के लिए ये महिलाएं स्वयं बहुत से काम करती है जिनमे न तो इनको पूरा मानदेय मिलता है और न ही मानसिक संतोष|  

हिंसा % कार्यस्थल पर यौन हिंसा, शारीरिक एव मानसिक प्रताडना से कई बार अपने कार्य को करते रहने में समस्या आाती है।

तलाकशुदा और अविवाहित लड़कियों के साथ जो दृष्टिकोण रखा जाता गई वो उनको अपने काम को बीच में छोड़ने पर बाध्य करता है|

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, हालांकि इन क्षेत्रों में रोज़गार के क्षेत्रों में अभी भी महिलाओ का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। उदारीकरण भारतीय अर्थव्यवस्था ने शिक्षित शहरी महिलाओं के लिए नए रोजगार के अवसर पैदा किये है किन्तु मुख्य धारा से अलग हुई महिलाओं के लिए योग्यता होने के बाद भी रोज़गार के अवसर बहुत ही कम है जो की वह अपनी सुविधा के अनुसार कर सके|
एक आंकडों के अनुसार महिलाओं की विभिन्ने व्यावसाय में भागीदारी :
1.       निजी उद्योगों में कर्मचारियों के 23 प्रतिशत,
2.       आईटी कंपनियों में कर्मचारियों के 25 प्रतिशत और
3.       बीपीओ में कर्मचारियों की 50 प्रतिशत
4.       बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की 100 कंपनियों के सर्वे से स्पष्ट है की कुछ ही महिलायें नेतृत्व की स्थिति में है।
5.       एक नई रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के वरिष्ठ नेतृत्व के पदों में से केवल 19 प्रतिशत और कुल नियोजित आबादी का सिर्फ 15 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं।

आगे की पढ़ाई के लिए कोई विकल्प नहीं है तो अपनी विषय विशेषज्ञता के अनुसार महिलाएं कुछ क्षेत्रों में कार्य कर सकती है जिसके लिए वो दूरस्थ माध्यम से भी कोर्से भी कर सकती है
1.       लेखन के लिए फ्री लांसिंग, अनुवाद, संपादन  का कार्य कर सकती है इसके लिए कार्यालय जाने की भी आवशयकता नहीं है किन्तु इस क्षेत्र में अपने को स्थापित करने के लिए किसी भी महिला को भाषा और विषय विशेषज्ञता का ध्यान रखना होगा| लेखन करने पर विषय को बेहतर तरीके से पढना और समझना चाहिए उसके बाद ही कार्य प्रारंभ करना चाहिए कही पर भी ऐसा नहीं लिखना चाहिए जो की ग़लत सूचना दे या फिर भ्रम में डाले अनुवाद एवं संपादन का कार्य करने के लिए भाषा कौशल विकसित करना चाहिए|
2.       उनकी खुद की कोचिंग संस्थान प्रारंभ किया जा सकता है जिसमे अपनी योग्यता के अनुसार बच्चों को शिक्षा दी जा सकती है|
3.       गतिविधि संस्थान प्रारंभ किया जा सकता है जिसमे तकनीकी शिक्षा दी जा सकती है जैसे की कंप्यूटर ट्रेनिंग संस्थान
4.       कई महिलाये समूह में एकत्र हो कर स्वयं सहायता समूह बना कर कई प्रकार के कार्य कर सकती है|
5.       उक्त सभी कार्यों को करने के लिए यदि संभव हो तो दूरस्थ माध्यम से डिग्री या डिप्लोमा लिया जा सकता है जिससे की बेहतर तरीके से काम किया जा सके| साथ ही यदि संभव हो तो आगे जाने विकल्प मिलने पर मुख्या धारा से जुडा जा सके|

कैरियर को बीच में किन्ही कारणों से छूट जाने के बाद पुनः मुख्य धारा में आने के लिए शैक्षणिक क्षेत्र आगे आने के लिए भी ऐसी महिलाओ के लिए सीमित विकल्प है जिनके द्वारा वह अपने शैक्षिक गतिविधियों को सतत रूप से आगे ले जा सकती है|
1.       विभिन्न वैज्ञानिक संगठन जैसे भारत सरकार का विज्ञान और तकनीकी विभाग (डीएसटी), जैव प्रोधोयोगिकी विभाग (डीबीटी), यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) की महिला वैज्ञानिक योजना के तहत विभिन्न वर्गों की छात्रवृत्ति के लिए
2.       अनुसंधान के लिए छात्रवृत्ति मूल में / एप्लाइड साइंस (WOS-ए)
3.       एस एंड टी में अनुसंधान के लिए छात्रवृत्ति - सामाजिक कार्यक्रमों आधारित (WOS-बी)
4.       स्वरोजगार के लिए इंटर्नशिप (WOS-सी)

5.       विभिन्न शैक्षिक संस्थान प्रायोजित परियोजनाओं में शामिल में शामिल होने के लिए विज्ञापन प्रसारित करते है जिनमे योग्यता के अनुसार शामिल हुआ जा सकता है।

Thursday 30 July 2015

जिसके प्रयोग ने दिया प्रकाश को नया प्रकाश अल हसन बिन हैथम




डा. टीवी वेंकटेष्वरन एवं डा. इरफाना बेगम
विज्ञान प्रसार
सी-24 कुतुब संस्थानिक क्षेत्र
नई दिल्ली

प्रकाश के रहस्यों से पर्दा उठाने वाले वैज्ञानिक अलहसन बिन हैषम जिन्हे विभिन्न स्थाई क्षेत्रों एवं भाषा के उच्चारण के आधार पर अलग अलग नाम से जाना जाता है का जन्म ईसा पश्चात 965 में हुआ । इब्न अल हेथम की शिक्षा आधुनिक इराक बसरा में और फिर बगदाद के प्रसिद्ध स्कूलों में हुई  थी। प्रकाशिकी और वैज्ञानिक प्रणाली के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देने वाले इस वैज्ञानिक का पूरा नाम अबु अली अल-हसन इब्न अल-हेथम है जो विश्व के सर्वोत्कृृष्ट भौतिकशास्त्रियों में एक हैं जिन्हे पश्चिम के देशो में अल्हासेन या अलहाजेन के नाम से जाना जाता है। किताब अल मनाजिर के कवर पृष्ठ पर लेखक का नाम अलहसन बिल हैषम लिखा हुआ है किन्तु उर्दू नामावली के अनुसार जिसका अर्थ हुआ हैषम के पुत्र हसन। ष को अंग्रजी लिपी में टीएच लिखा गया जिससे थ पढा गया और नाम को हैथम पढा गया। यूनेस्को  अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाश वर्ष के सम्पूर्ण विवरण में बिन हैथम अर्थात हैषम के पुत्र के रूप में ही पहचाना गया है।


नौवीं से तेरहवीं शताब्दी के समयान्ंतराल को योरोप के विज्ञान के इतिहास के अंधकार युग के रूप में जाना जाता है क्योकि इस अवधि के दौरान विज्ञान के क्षेत्र में बहुत ही कम या कह सकते हैं कि कुछ भी विकास नहीं हुआ। योरोप की वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिये कुछ प्राचीन यूनानी दार्शिनिकों का जिक्र होता है और उसके बाद वर्णन होता है रॉजर बेकन, गैलीलियो गैलीली और आइजक न्यूटन के कार्यो का विवरण मिलता हेै। जिसके आधार पर हाल तक गैलीलियो गैलीली को आधुनिक विज्ञान का जन्मदाता माना जाता था, विशेषकर प्रयोगात्मकता और गणित के प्रयोग के लिए।

किन्तु एक ओर जब योरोप के लिये विज्ञान के इतिहास के अंधकार युग था वही दूसरी ओर अरब की दुनिया विज्ञान के लिये स्वर्णिम दौर में थी जिसमें इस क्षेत्र के वैज्ञानिकों ने गणित, खगोल विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान और दर्शन शास्त्र में महत्त्वपूर्ण उन्नति की। इसी समय मेें बसरा आधुनिक ईराक में जन्में इब्न अल-हेथम ने 1015 से 1021 के बीच यानि कि लगभग 6 सालों की समयावधि में प्रकाश विज्ञान पर सात खण्डों में अपने प्रयोग एवं निष्कर्ष फ्किताब अल-मनाजिरय् नाम से लिखे। इन विवरणों नें प्रकाश के बारे में हमारी समझ को बिलकुल ही बदल दिया और प्रकाशिकी विज्ञान के विकास के लिये रास्ता साफ किया। इसके प्रकाशन से ही  आधुनिक विज्ञान  का भी आरम्भ माना जाता है। साथ ही अब यह साफ हो गया कि इब्न अल-हेथम को भी सही मायनों में आधुनिक विज्ञान के जन्मदाताओं में से एक हैं। इसके बाद के यूरोपीय विद्धानों ने इन्हीं पारसी और अरबी विद्धानों के द्वारा दिखाये गये प्रकाश में यूरोपीय पुनर्जागरण यानी रैनेसां को जन्म दिया। यदि इब्न अल -हेथम के वैज्ञानिक सिद्धांतो की पुष्टि नहीं होती तो सम्भवतः यूरोप अभी भी अटकलबाजी, अंधविश्वास और अप्रमाणित मिथकों की उस दुनिया में होता जो प्राचीन यूनानी विज्ञान का आधार था।

बाद के सालों में सन 1915 में में आइंस्टीन ने सापेक्षता का सिद्धांत (थियोरी ऑफ रिलेटिविटी) प्रतिपादित किया जिसने सिद्ध कर दिया कि कैसे प्रकाश दिक् -समय दोनों की ही संरचना के मूल में है। जो इस तथ्य पर आधारित है कि  प्रकाश का वेग अपरिवर्तनीय है यानि वह सबके लिए एक ही नियतांक है, निरपेक्ष है।

वर्ष 2015 प्रकाश की खोज के दृष्टिकोण में इसलिये अधिक महत्वपूर्ण है कि एक ओर जहां प्रकाश के व्यवहार को समझने के लिये किये गये अध्ययनों को समेटे हुये प्रकाशन किताब अल मनाजिर की हजारहवीं वर्षगाँठ  मना रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सन 1915 में में आइंस्टीन के द्वारा सम्पादित सापेक्षता के सिद्धांत (थियोरी ऑफ रिलेटिविटी) के सौवीं वर्षगांठ भी मना रहे है। प्रकाश से सम्बन्धित इन दो बेहद ही महत्वपूर्ण  घटनाओं को  ध्यान में रखते हुये इन घटनाओं जिससे कि प्रकाश के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण पहेलियों को समझा गया के सम्मान में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने वर्ष 2015 को अन्तराष्ट्रीय प्रकाश वर्ष घोषित  किया है !

नौवीं से तेहरवीं शताब्दी के बीच का समय विज्ञान के क्षेत्र में इस्लामी सभ्यता का सुनहरा युग माना जाता है इस काल में यह सभ्यता यूरोप में स्पेन से लेकर पूर्व में चीन तक यह सभ्यता फैली हुई थी और विज्ञान, टेक्नोलॉजी और चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई थी।
नौवीं शतब्दी के मध्य तक बाएत (बैत) अल-हिक्मा यानी फ्विवेक का घरय् विश्व भर में पुस्तकों का वृहदतम संग्रह था। इस समय बगदाद के बाएत अल-हिक्मा दुनिया के सबसे बेहतर स्कूलंो में माने जाते थे बगदाद में स्थित यह अध्ययन के ऐसे केंद्र थे जहां विभिन्न मतों और धर्मों को मानने वाले विद्धान आते, प्राचीन यूनानी, भारतीय और पारसी ग्रंथों का अध्ययन करते, पुस्तको का अरबी में अनुवाद करने और उनका परिरक्षण करने के अलावा, बाएत अल-हिक्मा के साथ जुडे विद्धानों ने कई भिन्न क्षेत्रों में श्रेष्ठ मौलिक योगदान भी दिया। जिसके परिणामस्वरूप यहां विश्व भर का उत्कृष्ट ज्ञान संग्रहीत हुआ। यहाँ से कई प्रेरक व्यक्तित्व वाले, सही इब्न  हारून मुख्य पुस्तकालयध्यक्ष, हुनायन इब्न इश्क चिकित्सक, याकूब इब्न इश्क अल किण्डी दार्शनिक, बानू मूसा बन्धु गणितज्ञ एवं इजींनियर ंिसद इब्न अली खगोलविद्व, अबू उसमान जिन्हे सामान्यतः अल जाहिज लेखक और जैव वैज्ञानिक, अल जाजरी मनोवैज्ञानिक एवं इजंीनियर जैसे महत्वपूर्ण लोग इन्ही बाएत (बैत) अल-हिक्मा से निकल कर आये।  जो कि विभिन्न मतों और सभ्यताओं  से जुडे पुरुष और महिला विद्धान थे, जिनका विश्व पर प्रभाव तो बहुत बडा था पर सराहा कम गया। इसी विश्ववादी  प्रकार की  सभ्यता ने ही, शायद, इब्न अल-हेथम को उस जमाने की रूढियों से निकल कर नए रास्ते तलाशने के  लिए प्रेरित किया।  

अपनी आत्मकथा में वो बताते हैं कि उन्होंने अपने यौवन में विभिन्न धर्मों पारस्परिक विरोधी धार्मिक दृष्टिकोण पर बहुत विचार किया था और वह इस नतीजे पर पहुंचे कि उनमें से कोई भी सच का प्रतिरूपण नहीं है। इसलिए उन्होंने दुनिया के सच जानने के लिए अपने को पूरे तरह से विज्ञान के अध्ययन में लगाने का निश्चय  किया।

इसी समय दुनिया के एक और हिस्से मिस्र के फातिमियूं खलीफा अल-हाकिम ब-अम्र अल्लाह, बगदाद से बराबरी करने के लिय विज्ञान और साहित्य को बढावा दे रहे थे। जिसके लिये काहिरा में उन्होंने सर्वोत्तम खगोलीय यंत्रों से युक्त वेधशाला और एक पुस्तकालय बनवाया। बगदाद से बराबरी करने के लिए उन्होंने अपने इस केन्द्र में वैज्ञानिक और खगोलविद्व इब्न युनुस जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिकों को बुलाया। और बाएत (बैत) अल-हिक्मा के समान ही दारूल हिक्मा का निर्माण कराया। मिस्र के इस खलीफा ने  इब्न अल-हेथम के और नील नदी के ऊपर बाँध बना कर उसकी बाढ को रोकने के उनके सुझाव के बारे में सुना और इस सुझाव से प्रभावित होकर खलीफा ने इब्न अल-हेथम बाँध बनाने का काम सौंपतंे हुये मिस्र आने का निमंत्रण दिया। बगदाद में नौकरशाही वाले काम बोरियत से बचने के लिए इस चुनौती स्वीकारते हुये अल-हेथम ने इराक से  मिस्र जाने का निश्चय किया। पर अफसोस काहिरा पहुँच कर बाँध बनाने का उनका सपना टूट गया क्योंकि अल- हेथम  ने नील नदी पर पहुँच कर पाया कि उनका सुझाव तकनीकी दृष्टि से अव्यवहारिक होने के साथ- साथ यथार्थववादी ंनहीं था।

किन्तु अल-हेथम जानते थे कि अगर खलीफा को यह बताई गई तो इसके नतीजे बुरे होगंे सम्भावित रूप से इसकी सजा मौत हो क्योकि वह जानते थे कि खलीफा स्वभाव से झक्की था जिसके कारण उसे सनकी खलीफा भी कहा जाता है। क्योकि सनकी अल-फतिम ने अल-फुसतात नाम के शहर जो कि मिस्र की पहली राजधानी थी को उजाडने के साथ -साथ  सारे कुत्तों को मरवाने का आदेश दिया था, क्योंकि उनके भौकने से वह परेशान था। उसने कुछ सब्ज्यिों और फलों पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया था क्योंकि वो उसे नापसंद थे।

इस मुश्किल स्थिति अपने आप को मौत से बचाने के लिये इब्न अल-हेथम ने पागल होने का नाटक किया और प्रदर्शित किया कि उसने बाध्ंा बनाने का अपना विचार पागलपन के कारण दिया था जिसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है। इस नाटक ने उन्हे फांसी की सजा से तो बचा लिया किन्तु उन्हे घर में नजरबंद कर दिया गया। तत्कालिक खलीफा निधन उनके निधन के बाद लगभग 10 साल 1011 से 1021 तक अल-हेथम ने अपना  राज जहिर किया कि वह पागलपन का सिर्फ नाटक ही कर रहे थे।

अपने नजरबंदी के इन दस सालों को इब्न अल-हेथम ने बेकार नहीं जाने दिया। अपने एकांतवास के इस समय का उपयोग अपने शोध कार्य को करने में किया जिसका परिणाम था सात खण्डों वाले ग्रन्थ फ्किताब अल-मनाजिरय् का प्रकाशन। सामन्यतः इसे अंग्रेजी में फ्बुक ऑफ ऑप्टिक्सय्  के नाम से जाना जाता है किन्तु इसका अधिक उपयुक्त अनुवाद फ्बुक ऑफ विजनय् होगा। उन्होंने दृष्टि की प्रक्रिया, प्रकाश की प्रकृति और नेत्रों की कार्यप्रणाली के आदि के बारे में जो अध्ययन किया और लिखा वो सही मायनों में क्रांतिकारी था ,पर जिस तरह से उन्होंने शोध किया वह उनका विज्ञान की दुनिया के लिए सबसे बडे योगदान में से एक है।

अपने समकालीन वैज्ञानिकों के दृष्टि बोध के तथ्यों की उलझी हुई व्याख्या से इब्न अल-हेथम सन्तुष्ट नहीं हो पा रहे थे क्योंकि इस समय तक प्रकाश से सम्बन्धित युनानिंयों के अपने कई सिद्धांत थे जो परस्पर विरोधी थे। ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी में एम्पेडोक्लेस ने तर्क दिया कि एक विशेष तरह का प्रकाश, जिन्हें फ्विजन रेय् का नाम दिया गया था, आँख से चमकता  हैं और जब यह किसी वस्तु पर पडता था  तब वह वस्तु दिखाई देने लगती थी।  इस तथ्य को सुधारते हुये प्लेटो ने तर्क दिया कि किसी वस्तु  को देखने के लिए बाह्य प्रकाश की भी आवश्यकता होती है। ईसा पूर्व चैथी शताब्दी में उन्होंने लिखा कि प्रकाश आँख से निकलता है ,वस्तुओं को अपनी  किरणों से से दबोच लेता है और  इसे  महसूस करते हैं बिलकुल वैसे जैसे  व्यक्ति अपनी छडी से  टटोलता है। सक्रिय  आँख का यह विचार और उत्सर्ग का यह सिद्धांत बिल्ली और अन्य जानवरों की चमकती आँखों को देख कर उत्पन्न हुआ। इस विचार को प्रचलित धारणा बनाने में फ्भेदती हुई आँखेंय्, बुरी नजर ,जैसे शब्द मददगार साबित हुए। दूसरी तरफ अरस्तु का सिद्धांत था कि नेत्रों को बाहर प्रकाश भेजने  की बजाय  बाहर से प्रकाश किरण मिलती  है। इस प्रश्न के जवाब में कि छोटी छोटी ऑंखें इतना बडा पदार्थ का कोण कैसे भेज सकती हैं कि वह  तारों  पहुँच जाए और  वह भी अरस्तु का मानना था कि आँखों से  प्रकाश विकीर्ण होने के  बजाय, वस्तुएं ही बीच की हवा को हिला देती  हैं और इसकी वजह से दृष्टि सक्रिय  हो जाती है बिलकुल वैसे ही जैसे फूल की खुशबू का एहसास नाक को हो जाता है।

प्लेटो के वृहद प्रभुत्व के कारण ,उनके बाद के कई विचारकों ने उनकी बाहर संचारित होने वाले       दृष्टिकोण को ही कुछ तब्दीलियों को अपनाया। ईसा पश्चात दूसरी शताब्दी में मशहूर चिकितस्क गलेन ने जानवरों की आँख में पारदर्शी लेंस की उपस्थिति को खोज निकाला।  पर वो इसका महत्त्व  नहीं समझ सके और उन्होंने भी बाह्य संचारण वाले सिद्धांत को  स्वीकार कर लिया।  प्लेटो  और गलेन  का प्रभाव इतना अधिक था कि  सदियों तक उसने इस क्षेत्र में समीक्षात्मक विचारों को बाधित किया।  अल-कैंडी और हुनैन इब्न इश्क जैसे आरंभिक इस्लामी विद्धानों ने एक संयुक्त बाहरी और आतंरिक संचारण सिद्धांत को प्राथमिकता दी। उन्होंने सुझाया कि नेत्र पहले दृष्टिगत वस्तु पर प्रकाश डालते हैं , और फिर वह वस्तु वह प्रकाश वापस आँख की ओर परावर्तित कर देती है। पर इब्न अल-हेथम इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। वो वो सोचते कि  अगर प्रकाश हमारी आँख से ही आता है ,तो फिर सूरज  को देखने में  इतना कष्ट क्यों होता  है? इस बडी आम सी अनुभूति ने उन्हें प्रकाश  व्यवहार और गुणों पर शोध करने के लिए प्रेरित किया।

बहुत ही सावधानी से किये गये अपने प्रयोगों  से उन्होंने दृष्टि के विषय पर खोजबीन की और यह बताया किया कि हम वस्तुओं को तभी देख पाते हैं जब आसपास प्रकाश हो या तो उसी वस्तु का प्रकाश हो (जैसे कि कोई दिया या लैम्प) या फिर कहीं से परावर्तित होती हुई प्रकाश किरण (जैसे दिन में सूरज की रौशनी)। इस प्रकार उन्होंने ने साबित किया कि दृष्टि को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें पहले प्रकाश को समझना होगा।

प्रकाश के स्वरूप को समझने के लिए इब्न अल-हेथम ने एक अंधकारमय कैमरा बनाया, जिसे वह फ्अल्बाइत (अलबेत) अलमुजलिमय् (जिसका लेटिन में अनुवाद है फ्कैमरा ओब्स्कयूराय्), एक ऐसा उपकरण जो फोटोग्राफी का आधार है। फ्कैमरा ओब्स्कयूराय् बस एक छोटे छेद  वाला कैमरा था, एक  छोटा डिब्बा जिसके एक तरफ एक बहुत ही छोटा सा छेद  है, जिससे वह बाहर की किसी वस्तु को डिब्बे के अंदर एक सतह पर प्रतिबिंबित करता है। इस छोटे छेद वाले कैमरे और एक खोखली नाली या ट्यूब को लेकर, इब्न अल-हेथम ने प्रकाश के बारे में  जानकारी हासिल की। उन्होंने प्रकाश की मूल प्रवृतियों का पता लगाया जैसे कि प्रकाश की किरणें सीधी रेखा में चलती हैं या एक समतल दर्पण पर प्रकाश एक तरीके से प्रतिबिंबित होता है और वक्रीय शीशों पर दूसरी तरह से यह वायु से पानी में जाते समय यह  उल्टी तरफ) प्रकाश अपवर्तित होता है (मुड जाता है)।

उन्होंने एक काम किया जो किसी भी वैज्ञानिक ने तब तक नहीं किया था  गणित खातौर पर ज्यामिति की मदद से दृष्टिबोध की प्रक्रिया को समझना और साबित करना। कैमरा ऑब्स्क्यूरा पर किये गए प्रयोगों से उन्हें ज्ञात हुआ कि पारदर्शी लेंस की वक्रीय सतह पर आयातीय प्रकाश की किरणें आँख के पीछे उल्टा  प्रतिबिम्ब बनाती हैं। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कोई भी वस्तु हमें तभी  दिखाई पडेगी जब प्रकाश की किरण किसी प्रकाश स्रोत से आ रही हो या ऐसे किसी स्रोत से परावर्तित हो कर आँख में आये।  उन्होंने प्रकाशिकी को उसके दार्शनिक चोले से निकालकर, गणित और भौतिक विज्ञान के ढांचे में रख दिया।

भौतिकी, गणित और शरीर क्रिया विज्ञानं के अनोखे सम्मिश्रण से उन्होंने दृष्टि का एक नया  सिद्धांत का सूत्र पात किया और यह प्रभावी तरीके से आधुनिक विचार स्थापित कर दिया कि हमें कोई भी वस्तु दृश्य होती है क्योंकि  प्रकाश उससे  परावर्तित हो  कर हमारी आँख में आता है और रेटिना पर एक प्रतिबिम्ब बनाता है। अपनी महान कृति किताब अल-मनाजिर  में इब्न अल-हेथम लिखते हैं,फ्दृष्टि की क्रिया दृष्टि संबधी अंग से निकली किरणों की वजह से नहीं होती है परन्तु संभव होती है बाहरी  वस्तु से आती हुई किरण से जो दृष्टि सम्बन्धी अंग पर पडती हैं।

अब उन्होंने आँख की कार्य प्रणाली पर और अधिक खोजबीन की। आँख की चीरफाड और पूर्व के विद्वानों के ज्ञान की मदद से यह समझाना शुरू कर दिया कि प्रकाश कैसे आँख में अंदर आता है, कैसे केंद्रित होता है और फिर आँख के पीछे प्रक्षेपित होता है। वैसे तो इस तथ्य से कि आँख के परदे पर बना प्रतिबिम्ब उलटा होता है, थोडा असुविधाजनक था ,क्योंकि अगर प्रतिबिम्ब उलटा है तो हम दुनिया सीधी कैसे देखते हैं यह सवाल उठता है। पर इब्न अल-हेथम ने यह जान लिया कि एक बार आँख के परदे पर प्रतिबिम्ब बन गया उसके बाद शुद्ध प्रकाशिकी  के तर्क बेमायने हो जाते हैं। उनका तर्क था (और जो उचित भी था) रेटिना का बिंदुशः प्रतिरूपण मस्तिष्क में पहुंचता है और वही पर दृष्टि बोध होता है।

इन्हीं तरीकों का इस्तेमाल कर ,इब्न अल-हेथम ने इस बात की भी व्याख्या की कि जब सूरज और चन्द्रमा क्षितिज के पास  होते हैं तो बडे क्यों प्रतीत होते हैं। उन्होंने अपवर्तन पर लिखा खासतौर से वायुमंडलीय अपवर्तन पर और उत्तल  दर्पण पर  उस बिंदु को भी ढूंढ निकाला जहाँ पर प्रकाश की किरण एक बिंदु से आते हुए दुसरे बिंदु पर परावर्तित होती है।

इब्न अल-हेथम के प्रकाशिकी शोध का एक पहलू है प्रयोगों पर सर्वांगी और व्यवस्थित ढंग से निर्भर करना(एतबार ) और उनके वैज्ञानिक अवधारणाओं की नियंत्रित जांच। उनके सिद्धांतो  में क्लासिकल भौतिकी और गणित, खास कर ज्यामिति का ,मेल है।

अपनी महान कृति किताब अल-मंनाजिर  में इब्न अल-हेथम ने अपने  प्रयोगों का विवरण तो दिया ही साथ ही  इस्तेमाल किये गए उपकरणों की विस्तृत  जानकारी ,कैसे उन्हें लगाया ,क्या माप लिए और उनके नतीजों का भी जिक्र किया। इन पर्यवेक्षणों का इस्तेमाल कर वह अपने उन सिद्धांतों का औचित्य समझाते ,जिन्हें उन्होंने ज्यामितिक मॉडल से स्थापित किया था।  वह अपने पाठकों को भी प्रेरित करते कि वह स्वयं यह प्रयोग करें और उनके निष्कर्ष सत्यापित करें।  विज्ञान के  कई इतिहासकार इब्न अल-हेथम को आधुनिक वैज्ञानिक प्रणाली का प्रथम उन्नायक मानते हैं।

 इब्न अल-हेथम ने अरस्तु के उन धारणाओं को बिलकुल ही नकार दिया जिसमें यह माना गया था कि पृथ्वी की घटनाओं और आकाशीय घटनाओं के अलग अलग नियम हैं।  उनका मानना था कि प्रकाश बिल्कुल एक ही प्रकार से आचरण करता है चाहे वह सूरज से निकला हो ,अग्नि से निकला हो, चाँद से परावर्तित हुआ हो या फिर लेंस या दर्पण से. यूं कहें कि प्रकाश तो सर्वव्यापी है। इस मामले में ,इब्न अल-हेथम ने सत्रहवीं शताब्दी के वैज्ञानिकों के सर्वव्यापी नियमों का  पूर्वानुमान  किया । अपने प्रयोगों से उन्होंने दर्शाया कि प्रकाश सीधी लकीरों में , अपने स्रोत से दूर होते होते प्रकाश की प्रबलता कम हो जाती है  और अपवर्तन के नियम भी ढूंढें।  अपने अपवर्तन के नियमों से उन्होंने गणना की कि सूरज जब क्षितिज में १९ डिग्री से नीचे  होगा तो गोधूलि की वेला होगी और उस घटना को समझाया जिसे लोग सदियों तक नहीं समझ पाये थे।

इब्न अल-हेथम वैज्ञानिक पद्धति से काम करने वाले प्रथम व्यक्तियों में से एक तो साथ ही वो आलोचनातमक सोच और संशयवाद के प्रणेता  भी थे। उन्होंने ही सबसे पहले एक व्यवस्थित तरीके से प्रयोगों में परिस्थितयों को नियत और एक समान रूप से बदल कर यह दिखाया कि अगर चाँद की किरणों को एक परदे पर दो  छोटे छेदों से प्रक्षेपित किया जाये  ,तो परदे पर बन रहे प्रकाश बिंदु की प्रबलता छेदों को ढंकने से कम  हो जाती है।

अपने जीवन में कई वर्षों बाद ,अपने समकालीन विद्वानों से सत्य, आधिपत्य और वैज्ञानिक शोध में आलोचना की भूमिका के विवादों से प्रेरित हो कर ,इब्न अल-हेथम ने वैज्ञानिक कार्य प्रणाली और वैज्ञानिक ज्ञान के विकास पर कुछ बहुत ही प्रबुद्ध वक्तव्य दिए। टॉलेमी (जिनकी वह बहुत इज््ज्त करते थे )  के एक कथन के लिए  उन्होंने कहा ,फ्सत्य स्वयं सत्य के लिए खोजा जाता है य् और कोई भी वैज्ञानिक विद्वान  त्रुटियों से प्रतिरक्षित  नहीं है ........ वह यह भी कहते हैं कि सत्य को खोजने वाला वह नहीं जो सिर्फ पुरानी  कथाएं पढे और अपनी  प्रवृत्ति  का अनुसरण करते हुए उनमें विश्वास करे बल्कि वह है जो उन पर और अपने भरोसे पर ही संदेह करे और प्रश्न पूछे ,वह है जो तर्क वितर्क करे सिद्ध करे।

जब स्पेन ने आइबीरिया  के मुस्लिम प्रदेश को पराजित किया ,उसी समय इब्न अल-हेथम की किताबों का अनुवाद लेटिन एवं इटैलियन में हुआ किन्तु इन अनुवादों में लेखक को उनके असली नाम से न कहकर उसके यूरोपीय अपभ्रंश फ्अलहाज्ेानय् के नाम से जाना गया। किताब अल-मनाजिर का लैटिन में अनुवाद फ्डी एस्पेक्टीबसय् के नाम  से हुआ तथा इटैलियन में एस्पेक्टि के नाम से जाना जाता है। पुस्तक अरस्तू एवं उनके समकक्ष दार्शनिकों के दृष्टि सिद्वान्त के विपक्ष में होने के बाद भी उनकी इस  किताब की प्रतियां यूरोप भर में फैल गयीं जिसने रॉजर बेकन ,योहानेस केप्लर ,गैलीलियो ,और न्यूटन जैसे पश्चिम के बुद्धिजीवियों को प्रभावित किया। रॉजर बेकन ने तो अल-हेथम के कई प्रयोगों को दुबारा किया और अल-हेथम के नये ज्ञान को सीखने वाली क्रांतिकारी प्रणाली का समर्थन भी किया। बेकन से प्रेरित हो कर मध्यकालीन यूरोप मै वैज्ञानिक पुर्नजागरणकाल प्रारम्भ हुआ।

इब्न अल-हेथम ने दलील दी कि उन्होंने लिखा ,फ् वैज्ञानिकों के लिखे पर अनुसन्धान करने वाले हर व्यक्ति का ध्येय और कर्तव्य सत्य को जानने का है भले ही उसको पढने वाले अनुसन्धानकर्ता के  दुश्मन हो जाए, फिर भी अनुसन्धानकर्ता पूर्व के ज्ञान पर हर तरफ से आक्षेप व सवाल करे।य् आधिपत्य होना ही प्राकृतिक दुनिया के सत्य को जानने के लिए काफी नहीं है और अगर विज्ञान को प्रगति करनी है तो उसे तथाकथित विशेषज्ञों के प्रभुत्व से निकलना पडेगा। उनका मानना था कि सभी पुराने यूनानी ज्ञानी सही नहीं हो सकते थे क्योंकि वह एक ही विषय पर विरोधी धारणाओं का अनुसरण करते थे। वो आगे लिखते हैं फ्उसे स्वयं (शोधार्थी) अपने भर भी संदेह करते रहना चाहिए ,जिससे वह किसी भी पूर्वाग्रह या फिर ढिलाई में न पड  जाए।य् इब्न अल-हेथम  ने  किसी भी घटना की तहकीकात करने के लिए, नए ज्ञान को हासिल करने के लिए या फिर पुरानी जानकारी को संशोधित और एकीकृत करने के लिए ऐसी पद्धति पर जोर दिया जिसका आधार था तथ्यों को प्रेक्षण तथा माप द्वारा एकत्रित करना ,उसके बाद तथ्यों को समझाने के लिए पुनरुत्पादनीय प्रयोगों द्वारा  अपनी  अवधारणा का सूत्रीकरण और परीक्षण करना। इसी पद्धति को हम फ्वैज्ञानिक तरीका या प्रणाली य् कहते हैं।

इब्न अल-हेथम के प्रकाशिकी पर उनके किये गए कार्य ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक विधि की क्षमता को समझने के तरीके ने विज्ञान के क्षेत्र में नये आयामों के लिये रास्ते प्रदर्शित किये। रिचर्ड फेनमैन के अनुसार इब्न अल-हेथम हमें सिखाया कि दुनिया कैसी है इस पर हम अपने को बुद्धू न  बना सकें। विश्व में विज्ञान और तकनीक की सफलता इसी लिये है क्योंकि प्रयोग करने और नतीजों को जांचने परखने की विधि बहुत ही प्रमाणिक है।

 नजरबंदी से आजादी के बाद अपनी मृत्यु 1040 तक अल-हेथम ने काहिरा में अजहर मस्जिद के पास रहते हुये जीवकोपार्जन के लिये गणित के ग्रन्थ लिखने, पढाने और ग्रंथों की नकल नवीसी का कार्य करते रहे ।

Friday 20 March 2015

Science Festival for propagation of the Science

Science communication generally refers to public communication presenting science-related topics to non-experts. This often involves professional scientists but has also evolved into a professional field in its own right. It includes science exhibitions, journalism, and policy or media production.

To communicate science among the children it is necessary to make the topic interesting as well as make the involvement of the children in the programme. Vigyan Prasar take an initiative to develop interesting format for learn with fun of science through the science festival. Since 2007 vigyan parasr is organizing science festival for the children of 10-15 years of age group.

Initially programme was based on documentary with discussion. After that format was changed we worked on do yourself activity based science festival with resource material without reference book. Now Vigyan Prasar is providing resource material along with resource book to the children. These festivals are more interactive and useful for the children. They can rework on their activities.

Science festivals are the innovative method to introduce the scientific information for the children of various age groups. Through the science festival with the help of do yourself programme children can learn basic information about the science and technology as electronics, life science, health, as well as science writing.

With the help of these science festivals Vigyan Prasar caters more than five thousand children every year. Approximate 2000 children were participated in the science festival programme from the rural area of the country and 3000 children were participated in the live programme through EduSAT Network of Vigyan Prasar, they belongs to the urban area of various part of the country.

In the session creative science writing Vigyan Prasar received articles, stories, poetries from the children around the country.  These content is generated during the sessions by children. After the programme children discuss and ask their queries with the resource person and also these children give the training to other groups. And motivate to others to participate in the programme and share their scientific talent.

Except making the models we are trying to teach through the programme children to do their own efforts and make new models as well as ask their quires with the resource persons. Vigyan Prasar received overwhelming responses from the children for the programme. Every year Vigyan Prasar organizes one month science festival during May to June through the EduSAT network as well as five to seven science festivals at remote locations at the country.