Tuesday, 18 March 2014

खुशियाँ

 खुशियाँ 

सपनों   के नगर में , काँच  के शहर में 
 छोटी सी दुकान में बिकती हैं खुशिया
 उसी दुकान के पीछे बड़े मकान  के बाद 
छोटी सी झोपड़ी है  मेरी  दुनिया 
बनाती मैं कंगन बनाती मैं  बर्तन
 नन्हे खिलोने के संग बनाती मैं चूड़ियां 
बहते मेरे आंसू जब धुआं धुआं  उगलती थी चिमनिया 
जले मेरे हाथ जब बटोरती मैं किरचियाँ 
पकड़ी जो किताब मैने   छिनी मेरे हाथ से 
मैं रोती थी तब भी जब बिकती थी रद्दिया 
हाथों का जलना आंसू का बहना 
छीनना किताबे है मेरे बचपन कि अनमिट निशानियाँ 

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