चवन्नी का रिटायरमेन्ट
दोस्तो मैं अब रिटायर
हो गया हू। मन तो बहुत भारी है लेकिन क्या करूं मेरा भी सेवा का समय समाप्त हो चुका
है अब बूढा हो चुका हूं। किसी काम का नही रह गया। आखिर सरकार ने भी मान लिया और 30 जून 2011 से मेरा कार्यकाल खत्म कर दिया गया। मैं भी संग्राहलयों की
शान बन जाऊंगा। या फिर उन लोगों के पास मिलुंगा जो कि शौकिया मुझे नुमाइश के लिये अपने
पास रखेंगे।
अरे! हम तो कहानी सुनाने बैठ गये अपना परिचय तो करावाया ही नही। तो दोस्तों मै
हूं 25 पैसे का सिक्का जिसे आप चवन्नी या फिर चार आने भी कहते हैं।
अब जबकि अभी नया निशान दिये हुए एक साल से भी कम का वक्त हुआ था और मेरे रिटायरमेन्ट
की घोषणा हो गई। जैसे कि कोई पदोन्नति पाकर खुश होता है मै भी बहुत खुश था लेकिन यह
क्या? यह तो मेरे रिटायरमेन्ट का भी समय आ गया। लेकिन कोई बात नही
मैंने भी वक्त के बहुत सारे उतार चढाव देखें हैं वैसे तो मेरी उम्र दो सौ सालों से
कुछ ही कम है लेकिन नये पैसे के हिसाब से भी साठ साल से भी ज्यादा उमर का हूं मगर सठिया
नही हू। चलो अपनी नजरो से तुमको भी कुछ दिखाऊ।
मैं जब पैदा हुआ तो मुझे आज की तरह पच्चीस पैसे या फिर चवन्नी नही कहा जाता जाता था। उस समय भारत में राजा महाराजा तो थे लेकिन
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने व्यापार के नाम पर भारत में अपने काफी पांव जमा लिये थे। यहां
भी अलग-अलग राज्यों के अपने सिक्के थे और इंग्लैड में भी उनके अपने अलग सिक्के। जिसकी
वजह से पैसे के लेन देन में बहुत मुश्किल होती थी। इसके लिये अलग प्रकार से सिक्के
चलाये गये। भारत में विलियम चतुर्थ के समय में पहली बार मुझे रूपये के चैथाई हिस्से
के सिक्के के रूप में पहचाना गया। इस वक्त
पर मैं चांदी का बना होता था। और यहीं से ही मेरी जिन्दगी का सफर शुरू हो गया। इस समय
मैं जिसके पास होता उसके लिये तो बहुत बडा सहारा होता क्योंकि तब तो पूरे माह की खर्चा
इसी से चल जाता था।
क्योकि इस समय लोग
पैसे के बदले बहुत कम सामान खरीदते थे बाटक व्यवस्था प्रचलित थे एक सामान के बदले में
दूसरा सामान लिया जाता था। मजदूरी में भी अध्कितर अनाज दे दिया जाता था। पैसों का लेन
देन कम ही था।
चालीस के दशक में ईस्ट इण्डिया का काम रानी विक्टोरिया के नाम से होने लगा। और
उनके शासन काल में रूपये के चैथाई हिस्से कि लिये एक सिक्का निकाला गया जिसमें एक और
रानी विक्टोरिया का चित्र उकेरा गया था। इस समय रानी की आयु 18 वर्ष थी और सिक्के पर उकेरा गया चित्र युवा रानी का था।
लेकिन जैसे -जैसे समय गुजरता गया मेरा रूप रंग भी बदलता गया सत्तर का दशक आते ही
मरे रूप में फिर से एक बदलाव आया। बनाया तो अब भी मुझे चादीं से ही जाता था लेकिन अब
मेरे ऊपर अंकित रानी की चित्रा वयस्क रानी के चित्र से बदल दिया गया। जिसमे रानी व्यवस्थित
रूप से ताज मे सुशोभित थी।
अस्सी और नब्बे के दशक मेरे लिये ठहराव लेकर आये इस दौरान मुझमे बहुत अधिक परिवर्तन
नही किये गये।
नई सदी हमारे लिये भी महत्वपूर्ण बदलाव ले कर आईं रानी विक्टोरिया की मृत्यु के
बाद उसके पुत्र एडवर्ड सप्तम का राज्याभिषेक हुआ और वह यूनाइटेड किंगडम का राजा बना
और साथ ही भारत का राजा बना।
इस समय बनाये जाने वाले सिक्कों मे से
रानी का नाम और चित्र हटाकर एडवर्ड सप्तम के नाम और चित्र को अंकित किया जाने लगा। सदी का मेरे अन्दर का दूसरा
बदलाव भी विशेष रहा अब मुझे रूपये का चौथा हिस्सा न कह कर एक नया नाम चार आना दिया
गया। यहां तक कि मेरे रूप मे विशेष परिवर्तन हुए अब मैं गोल से नये आकर में आने लगा।
मुझमे आठ कंगूरे होते थे। और मैं चांदी के स्थान ताबें मिले हुए निकिल से बनाया जाने
लगा। यह बदलाव आये 1919 में । मरे निर्माण
में प्रयोग होने वाले धतु मे बदलाव के लिये बहुत सीमा तक प्रथम विश्व युद्ध था। युद्ध
के दौरान बहुत धन जन की हानि हो चुकी थी। और
इस तरह पहली बार मेरे मूल्य मे गिरावट आई।
1910 में राजा जार्ज पंचम का राज्याभिषेक हुआ और सिक्कों पर राजनायक
के चित्र को उकेरने की परम्परा को निभाते हुए नई सदी के सिक्कों पर जार्ज पंचमके चित्र
उकेरे गये।
1919 में जारी किये गये सिक्के लोगों में बहुत जगह नहीं बना पाये
इसलिये रूपये के चौथे हिस्से के सिक्के वापस आ गये। एडवर्ड सप्तम के शासन काल में कोई
भी नया बदलाव नही आया उसके गद्दी छोडने के बाद राजा जार्ज षष्ठम ब्रिटिश शासन का अन्तिम
शासक बना और तब रूपये के चैथाई सिक्के में केवल शासक के चित्र के अलावा कोई विशेष परिवर्तन
नही किया गया।
राजा जार्ज षष्ठम
भारत में भारत के आजाद होने के बाद से गणतंत्र लागू होने तक भारत में रहे। और तब तक
तो ब्रटिश सरकार के ही सिक्के चलते रहे। अपनी इस उम्र में भी मेरा वैभव कम नहीं था।
बच्चों के पास अगर मैं होता तो वह कितनी मिठाई खा लेते और खिलौने खरीद लेते। और तो
और एक आदमी भर पेट खाना खा सकता था। लेकिन 15 अगस्त 1950 को देश का पहला अपना सिक्का लागू किया गया। रूपये के चौथे हिस्से
के रूप मै और इस समय मै चांदी या तांबे से न बनकर निकिल से बनाया गया। और इस पर देवनागरी
लिपि में चार आना लिखा गया। और इस पर अशोक की लाट का चिन्ह अंकित था।
सबसे बडा बदलाव 1950 का साल मेरे लिये लेकर आया। इसे एक इतिहास माना जा सकता है।
क्योकि हमारे देश को आजाद हुए अभी तीन वर्ष ही हुए थे और हाल ही में हमने अपना गणतन्त्र लागू किया था और हमारी अपने सिक्के भी
आ गये। 1 अप्रैल 1957 को भारत कोइनएज एक्ट
लागू हुआ। जिसके तहत 19 मिमी के सिक्के को 25 नया पैसा कहा गया। इस समय मुझे निकिल में गढा गया और मेरा वजन 5 ग्राम रखा गया। नया पैसा शब्द लगाना इसलिये जरूरी हो गया कि
हमारी जनता पैसों के अन्तर और मूल्य को समझ सके। 1 जून 1964 से पैसों से नया पैसा शब्द हटा लिया गया और तब से अब तक मैं
सिर्फ 25 पैसा ही रहा।
1960
का दशक तक लोग नये पैसे के प्रयोग को बेहतर तरीके से करने लगे
थे। अब लोगों ने मुझे रूपये के चौथे भाग की
जगह 25 पैसे कहना शुरू कर दिया मुझसे छोटे मेरे परिवार के सदस्यों को
तो एल्यूमिनियम में ढाल दिया गया लेकिन मुझमें ज्यादा फर्क नही आया। 1988 से मुझमे एक बडा बदलाव हुआ और वह था कि मेरा आकार तो उतना ही
रहा लेकिन मेरा वजन थोडा बढा दिया गया। और मैं अब जंग न लगने वाली स्टील से बनाया जाने
लगा। 1990 तक आते अपनी इस उम्र तक आते- आते वक्त बहुत बदल चुका था मुझे
भी शर्म आने लगी थी कि अब तो बच्चे मेरी मदद से सिर्फ एक आइसक्रीम ही खा पाते है वह
भी एसी ही वाली
आखरी बार मुझे 2002 में गढा गया जब कि एक तरफ गैंडे के चित्र उकेरा गया तो दूसरी ओर 25 पैसे और भारत लिखा गया। अब तो समय इतना बदल गया है कि मुझे कोई
भी लेने को तैयार नही होता। तो मुझसे सामान मिलना नामुमकिन सी बात है। एक आइसक्रीम
तो बडी बात है अब तो एक टाफी भी नही मिलती। मैं भी समय और हालात को देख रहा हू एक युग
जिया है मैने अमूल्य से बेमोल तक पहुंच गया हू। अब तो वैसा ही हो गया है कि एक समय
का भरपेट खाना खाने के लिये 100
चवन्नी भी ले जाओ तो कम हो जाये। वैसे तो सरकार ने अब रिटायर
किया है लेकिन आप लोगों ने ता कितने साल पहले ही हमसे नाता तोड लिया है मजबूरी में
ही हम आप के पास मिलते है। ठीक ही तो अगर जिसका कोई मूल्य नही है तो उसका क्या काम।
लेकिन एक खास बात और भी है अब तक मेरे मूल्य में इतनी गिरावट आ चुकी है कि मुझे बनाने
के लिसे प्रयोग में आने वाली धातु का मूल्य भी मुझसे अधिक हो जाता है। तो दोस्तो अलविदा! अब मेरी
आप से मुलाकात खत्म हो रही है। डर रहा हू कि रिटायरमेन्ट के बाद जैसे हर कोई गुमनामी
में खो जाता है मैं भी खो जाउगा लेकिन लोग हमें याद रखेंगे|