डा. टीवी वेंकटेष्वरन एवं डा. इरफाना बेगम
विज्ञान प्रसार
सी-24 कुतुब संस्थानिक क्षेत्र
नई दिल्ली
प्रकाश के रहस्यों से पर्दा उठाने वाले वैज्ञानिक अलहसन बिन हैषम जिन्हे विभिन्न स्थाई क्षेत्रों एवं भाषा के उच्चारण के आधार पर अलग अलग नाम से जाना जाता है का जन्म ईसा पश्चात 965 में हुआ । इब्न अल हेथम की शिक्षा आधुनिक इराक बसरा में और फिर बगदाद के प्रसिद्ध स्कूलों में हुई थी। प्रकाशिकी और वैज्ञानिक प्रणाली के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देने वाले इस वैज्ञानिक का पूरा नाम अबु अली अल-हसन इब्न अल-हेथम है जो विश्व के सर्वोत्कृृष्ट भौतिकशास्त्रियों में एक हैं जिन्हे पश्चिम के देशो में अल्हासेन या अलहाजेन के नाम से जाना जाता है। किताब अल मनाजिर के कवर पृष्ठ पर लेखक का नाम अलहसन बिल हैषम लिखा हुआ है किन्तु उर्दू नामावली के अनुसार जिसका अर्थ हुआ हैषम के पुत्र हसन। ष को अंग्रजी लिपी में टीएच लिखा गया जिससे थ पढा गया और नाम को हैथम पढा गया। यूनेस्को अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाश वर्ष के सम्पूर्ण विवरण में बिन हैथम अर्थात हैषम के पुत्र के रूप में ही पहचाना गया है।
नौवीं से तेरहवीं शताब्दी के समयान्ंतराल को योरोप के विज्ञान के इतिहास के अंधकार युग के रूप में जाना जाता है क्योकि इस अवधि के दौरान विज्ञान के क्षेत्र में बहुत ही कम या कह सकते हैं कि कुछ भी विकास नहीं हुआ। योरोप की वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिये कुछ प्राचीन यूनानी दार्शिनिकों का जिक्र होता है और उसके बाद वर्णन होता है रॉजर बेकन, गैलीलियो गैलीली और आइजक न्यूटन के कार्यो का विवरण मिलता हेै। जिसके आधार पर हाल तक गैलीलियो गैलीली को आधुनिक विज्ञान का जन्मदाता माना जाता था, विशेषकर प्रयोगात्मकता और गणित के प्रयोग के लिए।
किन्तु एक ओर जब योरोप के लिये विज्ञान के इतिहास के अंधकार युग था वही दूसरी ओर अरब की दुनिया विज्ञान के लिये स्वर्णिम दौर में थी जिसमें इस क्षेत्र के वैज्ञानिकों ने गणित, खगोल विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान और दर्शन शास्त्र में महत्त्वपूर्ण उन्नति की। इसी समय मेें बसरा आधुनिक ईराक में जन्में इब्न अल-हेथम ने 1015 से 1021 के बीच यानि कि लगभग 6 सालों की समयावधि में प्रकाश विज्ञान पर सात खण्डों में अपने प्रयोग एवं निष्कर्ष फ्किताब अल-मनाजिरय् नाम से लिखे। इन विवरणों नें प्रकाश के बारे में हमारी समझ को बिलकुल ही बदल दिया और प्रकाशिकी विज्ञान के विकास के लिये रास्ता साफ किया। इसके प्रकाशन से ही आधुनिक विज्ञान का भी आरम्भ माना जाता है। साथ ही अब यह साफ हो गया कि इब्न अल-हेथम को भी सही मायनों में आधुनिक विज्ञान के जन्मदाताओं में से एक हैं। इसके बाद के यूरोपीय विद्धानों ने इन्हीं पारसी और अरबी विद्धानों के द्वारा दिखाये गये प्रकाश में यूरोपीय पुनर्जागरण यानी रैनेसां को जन्म दिया। यदि इब्न अल -हेथम के वैज्ञानिक सिद्धांतो की पुष्टि नहीं होती तो सम्भवतः यूरोप अभी भी अटकलबाजी, अंधविश्वास और अप्रमाणित मिथकों की उस दुनिया में होता जो प्राचीन यूनानी विज्ञान का आधार था।
बाद के सालों में सन 1915 में में आइंस्टीन ने सापेक्षता का सिद्धांत (थियोरी ऑफ रिलेटिविटी) प्रतिपादित किया जिसने सिद्ध कर दिया कि कैसे प्रकाश दिक् -समय दोनों की ही संरचना के मूल में है। जो इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकाश का वेग अपरिवर्तनीय है यानि वह सबके लिए एक ही नियतांक है, निरपेक्ष है।
वर्ष 2015 प्रकाश की खोज के दृष्टिकोण में इसलिये अधिक महत्वपूर्ण है कि एक ओर जहां प्रकाश के व्यवहार को समझने के लिये किये गये अध्ययनों को समेटे हुये प्रकाशन किताब अल मनाजिर की हजारहवीं वर्षगाँठ मना रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सन 1915 में में आइंस्टीन के द्वारा सम्पादित सापेक्षता के सिद्धांत (थियोरी ऑफ रिलेटिविटी) के सौवीं वर्षगांठ भी मना रहे है। प्रकाश से सम्बन्धित इन दो बेहद ही महत्वपूर्ण घटनाओं को ध्यान में रखते हुये इन घटनाओं जिससे कि प्रकाश के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण पहेलियों को समझा गया के सम्मान में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने वर्ष 2015 को अन्तराष्ट्रीय प्रकाश वर्ष घोषित किया है !
नौवीं से तेहरवीं शताब्दी के बीच का समय विज्ञान के क्षेत्र में इस्लामी सभ्यता का सुनहरा युग माना जाता है इस काल में यह सभ्यता यूरोप में स्पेन से लेकर पूर्व में चीन तक यह सभ्यता फैली हुई थी और विज्ञान, टेक्नोलॉजी और चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई थी।
नौवीं शतब्दी के मध्य तक बाएत (बैत) अल-हिक्मा यानी फ्विवेक का घरय् विश्व भर में पुस्तकों का वृहदतम संग्रह था। इस समय बगदाद के बाएत अल-हिक्मा दुनिया के सबसे बेहतर स्कूलंो में माने जाते थे बगदाद में स्थित यह अध्ययन के ऐसे केंद्र थे जहां विभिन्न मतों और धर्मों को मानने वाले विद्धान आते, प्राचीन यूनानी, भारतीय और पारसी ग्रंथों का अध्ययन करते, पुस्तको का अरबी में अनुवाद करने और उनका परिरक्षण करने के अलावा, बाएत अल-हिक्मा के साथ जुडे विद्धानों ने कई भिन्न क्षेत्रों में श्रेष्ठ मौलिक योगदान भी दिया। जिसके परिणामस्वरूप यहां विश्व भर का उत्कृष्ट ज्ञान संग्रहीत हुआ। यहाँ से कई प्रेरक व्यक्तित्व वाले, सही इब्न हारून मुख्य पुस्तकालयध्यक्ष, हुनायन इब्न इश्क चिकित्सक, याकूब इब्न इश्क अल किण्डी दार्शनिक, बानू मूसा बन्धु गणितज्ञ एवं इजींनियर ंिसद इब्न अली खगोलविद्व, अबू उसमान जिन्हे सामान्यतः अल जाहिज लेखक और जैव वैज्ञानिक, अल जाजरी मनोवैज्ञानिक एवं इजंीनियर जैसे महत्वपूर्ण लोग इन्ही बाएत (बैत) अल-हिक्मा से निकल कर आये। जो कि विभिन्न मतों और सभ्यताओं से जुडे पुरुष और महिला विद्धान थे, जिनका विश्व पर प्रभाव तो बहुत बडा था पर सराहा कम गया। इसी विश्ववादी प्रकार की सभ्यता ने ही, शायद, इब्न अल-हेथम को उस जमाने की रूढियों से निकल कर नए रास्ते तलाशने के लिए प्रेरित किया।
अपनी आत्मकथा में वो बताते हैं कि उन्होंने अपने यौवन में विभिन्न धर्मों पारस्परिक विरोधी धार्मिक दृष्टिकोण पर बहुत विचार किया था और वह इस नतीजे पर पहुंचे कि उनमें से कोई भी सच का प्रतिरूपण नहीं है। इसलिए उन्होंने दुनिया के सच जानने के लिए अपने को पूरे तरह से विज्ञान के अध्ययन में लगाने का निश्चय किया।
इसी समय दुनिया के एक और हिस्से मिस्र के फातिमियूं खलीफा अल-हाकिम ब-अम्र अल्लाह, बगदाद से बराबरी करने के लिय विज्ञान और साहित्य को बढावा दे रहे थे। जिसके लिये काहिरा में उन्होंने सर्वोत्तम खगोलीय यंत्रों से युक्त वेधशाला और एक पुस्तकालय बनवाया। बगदाद से बराबरी करने के लिए उन्होंने अपने इस केन्द्र में वैज्ञानिक और खगोलविद्व इब्न युनुस जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिकों को बुलाया। और बाएत (बैत) अल-हिक्मा के समान ही दारूल हिक्मा का निर्माण कराया। मिस्र के इस खलीफा ने इब्न अल-हेथम के और नील नदी के ऊपर बाँध बना कर उसकी बाढ को रोकने के उनके सुझाव के बारे में सुना और इस सुझाव से प्रभावित होकर खलीफा ने इब्न अल-हेथम बाँध बनाने का काम सौंपतंे हुये मिस्र आने का निमंत्रण दिया। बगदाद में नौकरशाही वाले काम बोरियत से बचने के लिए इस चुनौती स्वीकारते हुये अल-हेथम ने इराक से मिस्र जाने का निश्चय किया। पर अफसोस काहिरा पहुँच कर बाँध बनाने का उनका सपना टूट गया क्योंकि अल- हेथम ने नील नदी पर पहुँच कर पाया कि उनका सुझाव तकनीकी दृष्टि से अव्यवहारिक होने के साथ- साथ यथार्थववादी ंनहीं था।
किन्तु अल-हेथम जानते थे कि अगर खलीफा को यह बताई गई तो इसके नतीजे बुरे होगंे सम्भावित रूप से इसकी सजा मौत हो क्योकि वह जानते थे कि खलीफा स्वभाव से झक्की था जिसके कारण उसे सनकी खलीफा भी कहा जाता है। क्योकि सनकी अल-फतिम ने अल-फुसतात नाम के शहर जो कि मिस्र की पहली राजधानी थी को उजाडने के साथ -साथ सारे कुत्तों को मरवाने का आदेश दिया था, क्योंकि उनके भौकने से वह परेशान था। उसने कुछ सब्ज्यिों और फलों पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया था क्योंकि वो उसे नापसंद थे।
इस मुश्किल स्थिति अपने आप को मौत से बचाने के लिये इब्न अल-हेथम ने पागल होने का नाटक किया और प्रदर्शित किया कि उसने बाध्ंा बनाने का अपना विचार पागलपन के कारण दिया था जिसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है। इस नाटक ने उन्हे फांसी की सजा से तो बचा लिया किन्तु उन्हे घर में नजरबंद कर दिया गया। तत्कालिक खलीफा निधन उनके निधन के बाद लगभग 10 साल 1011 से 1021 तक अल-हेथम ने अपना राज जहिर किया कि वह पागलपन का सिर्फ नाटक ही कर रहे थे।
अपने नजरबंदी के इन दस सालों को इब्न अल-हेथम ने बेकार नहीं जाने दिया। अपने एकांतवास के इस समय का उपयोग अपने शोध कार्य को करने में किया जिसका परिणाम था सात खण्डों वाले ग्रन्थ फ्किताब अल-मनाजिरय् का प्रकाशन। सामन्यतः इसे अंग्रेजी में फ्बुक ऑफ ऑप्टिक्सय् के नाम से जाना जाता है किन्तु इसका अधिक उपयुक्त अनुवाद फ्बुक ऑफ विजनय् होगा। उन्होंने दृष्टि की प्रक्रिया, प्रकाश की प्रकृति और नेत्रों की कार्यप्रणाली के आदि के बारे में जो अध्ययन किया और लिखा वो सही मायनों में क्रांतिकारी था ,पर जिस तरह से उन्होंने शोध किया वह उनका विज्ञान की दुनिया के लिए सबसे बडे योगदान में से एक है।
अपने समकालीन वैज्ञानिकों के दृष्टि बोध के तथ्यों की उलझी हुई व्याख्या से इब्न अल-हेथम सन्तुष्ट नहीं हो पा रहे थे क्योंकि इस समय तक प्रकाश से सम्बन्धित युनानिंयों के अपने कई सिद्धांत थे जो परस्पर विरोधी थे। ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी में एम्पेडोक्लेस ने तर्क दिया कि एक विशेष तरह का प्रकाश, जिन्हें फ्विजन रेय् का नाम दिया गया था, आँख से चमकता हैं और जब यह किसी वस्तु पर पडता था तब वह वस्तु दिखाई देने लगती थी। इस तथ्य को सुधारते हुये प्लेटो ने तर्क दिया कि किसी वस्तु को देखने के लिए बाह्य प्रकाश की भी आवश्यकता होती है। ईसा पूर्व चैथी शताब्दी में उन्होंने लिखा कि प्रकाश आँख से निकलता है ,वस्तुओं को अपनी किरणों से से दबोच लेता है और इसे महसूस करते हैं बिलकुल वैसे जैसे व्यक्ति अपनी छडी से टटोलता है। सक्रिय आँख का यह विचार और उत्सर्ग का यह सिद्धांत बिल्ली और अन्य जानवरों की चमकती आँखों को देख कर उत्पन्न हुआ। इस विचार को प्रचलित धारणा बनाने में फ्भेदती हुई आँखेंय्, बुरी नजर ,जैसे शब्द मददगार साबित हुए। दूसरी तरफ अरस्तु का सिद्धांत था कि नेत्रों को बाहर प्रकाश भेजने की बजाय बाहर से प्रकाश किरण मिलती है। इस प्रश्न के जवाब में कि छोटी छोटी ऑंखें इतना बडा पदार्थ का कोण कैसे भेज सकती हैं कि वह तारों पहुँच जाए और वह भी अरस्तु का मानना था कि आँखों से प्रकाश विकीर्ण होने के बजाय, वस्तुएं ही बीच की हवा को हिला देती हैं और इसकी वजह से दृष्टि सक्रिय हो जाती है बिलकुल वैसे ही जैसे फूल की खुशबू का एहसास नाक को हो जाता है।
प्लेटो के वृहद प्रभुत्व के कारण ,उनके बाद के कई विचारकों ने उनकी बाहर संचारित होने वाले दृष्टिकोण को ही कुछ तब्दीलियों को अपनाया। ईसा पश्चात दूसरी शताब्दी में मशहूर चिकितस्क गलेन ने जानवरों की आँख में पारदर्शी लेंस की उपस्थिति को खोज निकाला। पर वो इसका महत्त्व नहीं समझ सके और उन्होंने भी बाह्य संचारण वाले सिद्धांत को स्वीकार कर लिया। प्लेटो और गलेन का प्रभाव इतना अधिक था कि सदियों तक उसने इस क्षेत्र में समीक्षात्मक विचारों को बाधित किया। अल-कैंडी और हुनैन इब्न इश्क जैसे आरंभिक इस्लामी विद्धानों ने एक संयुक्त बाहरी और आतंरिक संचारण सिद्धांत को प्राथमिकता दी। उन्होंने सुझाया कि नेत्र पहले दृष्टिगत वस्तु पर प्रकाश डालते हैं , और फिर वह वस्तु वह प्रकाश वापस आँख की ओर परावर्तित कर देती है। पर इब्न अल-हेथम इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। वो वो सोचते कि अगर प्रकाश हमारी आँख से ही आता है ,तो फिर सूरज को देखने में इतना कष्ट क्यों होता है? इस बडी आम सी अनुभूति ने उन्हें प्रकाश व्यवहार और गुणों पर शोध करने के लिए प्रेरित किया।
बहुत ही सावधानी से किये गये अपने प्रयोगों से उन्होंने दृष्टि के विषय पर खोजबीन की और यह बताया किया कि हम वस्तुओं को तभी देख पाते हैं जब आसपास प्रकाश हो या तो उसी वस्तु का प्रकाश हो (जैसे कि कोई दिया या लैम्प) या फिर कहीं से परावर्तित होती हुई प्रकाश किरण (जैसे दिन में सूरज की रौशनी)। इस प्रकार उन्होंने ने साबित किया कि दृष्टि को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें पहले प्रकाश को समझना होगा।
प्रकाश के स्वरूप को समझने के लिए इब्न अल-हेथम ने एक अंधकारमय कैमरा बनाया, जिसे वह फ्अल्बाइत (अलबेत) अलमुजलिमय् (जिसका लेटिन में अनुवाद है फ्कैमरा ओब्स्कयूराय्), एक ऐसा उपकरण जो फोटोग्राफी का आधार है। फ्कैमरा ओब्स्कयूराय् बस एक छोटे छेद वाला कैमरा था, एक छोटा डिब्बा जिसके एक तरफ एक बहुत ही छोटा सा छेद है, जिससे वह बाहर की किसी वस्तु को डिब्बे के अंदर एक सतह पर प्रतिबिंबित करता है। इस छोटे छेद वाले कैमरे और एक खोखली नाली या ट्यूब को लेकर, इब्न अल-हेथम ने प्रकाश के बारे में जानकारी हासिल की। उन्होंने प्रकाश की मूल प्रवृतियों का पता लगाया जैसे कि प्रकाश की किरणें सीधी रेखा में चलती हैं या एक समतल दर्पण पर प्रकाश एक तरीके से प्रतिबिंबित होता है और वक्रीय शीशों पर दूसरी तरह से यह वायु से पानी में जाते समय यह उल्टी तरफ) प्रकाश अपवर्तित होता है (मुड जाता है)।
उन्होंने एक काम किया जो किसी भी वैज्ञानिक ने तब तक नहीं किया था गणित खातौर पर ज्यामिति की मदद से दृष्टिबोध की प्रक्रिया को समझना और साबित करना। कैमरा ऑब्स्क्यूरा पर किये गए प्रयोगों से उन्हें ज्ञात हुआ कि पारदर्शी लेंस की वक्रीय सतह पर आयातीय प्रकाश की किरणें आँख के पीछे उल्टा प्रतिबिम्ब बनाती हैं। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कोई भी वस्तु हमें तभी दिखाई पडेगी जब प्रकाश की किरण किसी प्रकाश स्रोत से आ रही हो या ऐसे किसी स्रोत से परावर्तित हो कर आँख में आये। उन्होंने प्रकाशिकी को उसके दार्शनिक चोले से निकालकर, गणित और भौतिक विज्ञान के ढांचे में रख दिया।
भौतिकी, गणित और शरीर क्रिया विज्ञानं के अनोखे सम्मिश्रण से उन्होंने दृष्टि का एक नया सिद्धांत का सूत्र पात किया और यह प्रभावी तरीके से आधुनिक विचार स्थापित कर दिया कि हमें कोई भी वस्तु दृश्य होती है क्योंकि प्रकाश उससे परावर्तित हो कर हमारी आँख में आता है और रेटिना पर एक प्रतिबिम्ब बनाता है। अपनी महान कृति किताब अल-मनाजिर में इब्न अल-हेथम लिखते हैं,फ्दृष्टि की क्रिया दृष्टि संबधी अंग से निकली किरणों की वजह से नहीं होती है परन्तु संभव होती है बाहरी वस्तु से आती हुई किरण से जो दृष्टि सम्बन्धी अंग पर पडती हैं।
अब उन्होंने आँख की कार्य प्रणाली पर और अधिक खोजबीन की। आँख की चीरफाड और पूर्व के विद्वानों के ज्ञान की मदद से यह समझाना शुरू कर दिया कि प्रकाश कैसे आँख में अंदर आता है, कैसे केंद्रित होता है और फिर आँख के पीछे प्रक्षेपित होता है। वैसे तो इस तथ्य से कि आँख के परदे पर बना प्रतिबिम्ब उलटा होता है, थोडा असुविधाजनक था ,क्योंकि अगर प्रतिबिम्ब उलटा है तो हम दुनिया सीधी कैसे देखते हैं यह सवाल उठता है। पर इब्न अल-हेथम ने यह जान लिया कि एक बार आँख के परदे पर प्रतिबिम्ब बन गया उसके बाद शुद्ध प्रकाशिकी के तर्क बेमायने हो जाते हैं। उनका तर्क था (और जो उचित भी था) रेटिना का बिंदुशः प्रतिरूपण मस्तिष्क में पहुंचता है और वही पर दृष्टि बोध होता है।
इन्हीं तरीकों का इस्तेमाल कर ,इब्न अल-हेथम ने इस बात की भी व्याख्या की कि जब सूरज और चन्द्रमा क्षितिज के पास होते हैं तो बडे क्यों प्रतीत होते हैं। उन्होंने अपवर्तन पर लिखा खासतौर से वायुमंडलीय अपवर्तन पर और उत्तल दर्पण पर उस बिंदु को भी ढूंढ निकाला जहाँ पर प्रकाश की किरण एक बिंदु से आते हुए दुसरे बिंदु पर परावर्तित होती है।
इब्न अल-हेथम के प्रकाशिकी शोध का एक पहलू है प्रयोगों पर सर्वांगी और व्यवस्थित ढंग से निर्भर करना(एतबार ) और उनके वैज्ञानिक अवधारणाओं की नियंत्रित जांच। उनके सिद्धांतो में क्लासिकल भौतिकी और गणित, खास कर ज्यामिति का ,मेल है।
अपनी महान कृति किताब अल-मंनाजिर में इब्न अल-हेथम ने अपने प्रयोगों का विवरण तो दिया ही साथ ही इस्तेमाल किये गए उपकरणों की विस्तृत जानकारी ,कैसे उन्हें लगाया ,क्या माप लिए और उनके नतीजों का भी जिक्र किया। इन पर्यवेक्षणों का इस्तेमाल कर वह अपने उन सिद्धांतों का औचित्य समझाते ,जिन्हें उन्होंने ज्यामितिक मॉडल से स्थापित किया था। वह अपने पाठकों को भी प्रेरित करते कि वह स्वयं यह प्रयोग करें और उनके निष्कर्ष सत्यापित करें। विज्ञान के कई इतिहासकार इब्न अल-हेथम को आधुनिक वैज्ञानिक प्रणाली का प्रथम उन्नायक मानते हैं।
इब्न अल-हेथम ने अरस्तु के उन धारणाओं को बिलकुल ही नकार दिया जिसमें यह माना गया था कि पृथ्वी की घटनाओं और आकाशीय घटनाओं के अलग अलग नियम हैं। उनका मानना था कि प्रकाश बिल्कुल एक ही प्रकार से आचरण करता है चाहे वह सूरज से निकला हो ,अग्नि से निकला हो, चाँद से परावर्तित हुआ हो या फिर लेंस या दर्पण से. यूं कहें कि प्रकाश तो सर्वव्यापी है। इस मामले में ,इब्न अल-हेथम ने सत्रहवीं शताब्दी के वैज्ञानिकों के सर्वव्यापी नियमों का पूर्वानुमान किया । अपने प्रयोगों से उन्होंने दर्शाया कि प्रकाश सीधी लकीरों में , अपने स्रोत से दूर होते होते प्रकाश की प्रबलता कम हो जाती है और अपवर्तन के नियम भी ढूंढें। अपने अपवर्तन के नियमों से उन्होंने गणना की कि सूरज जब क्षितिज में १९ डिग्री से नीचे होगा तो गोधूलि की वेला होगी और उस घटना को समझाया जिसे लोग सदियों तक नहीं समझ पाये थे।
इब्न अल-हेथम वैज्ञानिक पद्धति से काम करने वाले प्रथम व्यक्तियों में से एक तो साथ ही वो आलोचनातमक सोच और संशयवाद के प्रणेता भी थे। उन्होंने ही सबसे पहले एक व्यवस्थित तरीके से प्रयोगों में परिस्थितयों को नियत और एक समान रूप से बदल कर यह दिखाया कि अगर चाँद की किरणों को एक परदे पर दो छोटे छेदों से प्रक्षेपित किया जाये ,तो परदे पर बन रहे प्रकाश बिंदु की प्रबलता छेदों को ढंकने से कम हो जाती है।
अपने जीवन में कई वर्षों बाद ,अपने समकालीन विद्वानों से सत्य, आधिपत्य और वैज्ञानिक शोध में आलोचना की भूमिका के विवादों से प्रेरित हो कर ,इब्न अल-हेथम ने वैज्ञानिक कार्य प्रणाली और वैज्ञानिक ज्ञान के विकास पर कुछ बहुत ही प्रबुद्ध वक्तव्य दिए। टॉलेमी (जिनकी वह बहुत इज््ज्त करते थे ) के एक कथन के लिए उन्होंने कहा ,फ्सत्य स्वयं सत्य के लिए खोजा जाता है य् और कोई भी वैज्ञानिक विद्वान त्रुटियों से प्रतिरक्षित नहीं है ........ वह यह भी कहते हैं कि सत्य को खोजने वाला वह नहीं जो सिर्फ पुरानी कथाएं पढे और अपनी प्रवृत्ति का अनुसरण करते हुए उनमें विश्वास करे बल्कि वह है जो उन पर और अपने भरोसे पर ही संदेह करे और प्रश्न पूछे ,वह है जो तर्क वितर्क करे सिद्ध करे।
जब स्पेन ने आइबीरिया के मुस्लिम प्रदेश को पराजित किया ,उसी समय इब्न अल-हेथम की किताबों का अनुवाद लेटिन एवं इटैलियन में हुआ किन्तु इन अनुवादों में लेखक को उनके असली नाम से न कहकर उसके यूरोपीय अपभ्रंश फ्अलहाज्ेानय् के नाम से जाना गया। किताब अल-मनाजिर का लैटिन में अनुवाद फ्डी एस्पेक्टीबसय् के नाम से हुआ तथा इटैलियन में एस्पेक्टि के नाम से जाना जाता है। पुस्तक अरस्तू एवं उनके समकक्ष दार्शनिकों के दृष्टि सिद्वान्त के विपक्ष में होने के बाद भी उनकी इस किताब की प्रतियां यूरोप भर में फैल गयीं जिसने रॉजर बेकन ,योहानेस केप्लर ,गैलीलियो ,और न्यूटन जैसे पश्चिम के बुद्धिजीवियों को प्रभावित किया। रॉजर बेकन ने तो अल-हेथम के कई प्रयोगों को दुबारा किया और अल-हेथम के नये ज्ञान को सीखने वाली क्रांतिकारी प्रणाली का समर्थन भी किया। बेकन से प्रेरित हो कर मध्यकालीन यूरोप मै वैज्ञानिक पुर्नजागरणकाल प्रारम्भ हुआ।
इब्न अल-हेथम ने दलील दी कि उन्होंने लिखा ,फ् वैज्ञानिकों के लिखे पर अनुसन्धान करने वाले हर व्यक्ति का ध्येय और कर्तव्य सत्य को जानने का है भले ही उसको पढने वाले अनुसन्धानकर्ता के दुश्मन हो जाए, फिर भी अनुसन्धानकर्ता पूर्व के ज्ञान पर हर तरफ से आक्षेप व सवाल करे।य् आधिपत्य होना ही प्राकृतिक दुनिया के सत्य को जानने के लिए काफी नहीं है और अगर विज्ञान को प्रगति करनी है तो उसे तथाकथित विशेषज्ञों के प्रभुत्व से निकलना पडेगा। उनका मानना था कि सभी पुराने यूनानी ज्ञानी सही नहीं हो सकते थे क्योंकि वह एक ही विषय पर विरोधी धारणाओं का अनुसरण करते थे। वो आगे लिखते हैं फ्उसे स्वयं (शोधार्थी) अपने भर भी संदेह करते रहना चाहिए ,जिससे वह किसी भी पूर्वाग्रह या फिर ढिलाई में न पड जाए।य् इब्न अल-हेथम ने किसी भी घटना की तहकीकात करने के लिए, नए ज्ञान को हासिल करने के लिए या फिर पुरानी जानकारी को संशोधित और एकीकृत करने के लिए ऐसी पद्धति पर जोर दिया जिसका आधार था तथ्यों को प्रेक्षण तथा माप द्वारा एकत्रित करना ,उसके बाद तथ्यों को समझाने के लिए पुनरुत्पादनीय प्रयोगों द्वारा अपनी अवधारणा का सूत्रीकरण और परीक्षण करना। इसी पद्धति को हम फ्वैज्ञानिक तरीका या प्रणाली य् कहते हैं।
इब्न अल-हेथम के प्रकाशिकी पर उनके किये गए कार्य ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक विधि की क्षमता को समझने के तरीके ने विज्ञान के क्षेत्र में नये आयामों के लिये रास्ते प्रदर्शित किये। रिचर्ड फेनमैन के अनुसार इब्न अल-हेथम हमें सिखाया कि दुनिया कैसी है इस पर हम अपने को बुद्धू न बना सकें। विश्व में विज्ञान और तकनीक की सफलता इसी लिये है क्योंकि प्रयोग करने और नतीजों को जांचने परखने की विधि बहुत ही प्रमाणिक है।
नजरबंदी से आजादी के बाद अपनी मृत्यु 1040 तक अल-हेथम ने काहिरा में अजहर मस्जिद के पास रहते हुये जीवकोपार्जन के लिये गणित के ग्रन्थ लिखने, पढाने और ग्रंथों की नकल नवीसी का कार्य करते रहे ।