Wednesday 9 March 2016

लामबंदी किसके खिलाफ

जहाँ एक तरफ पूरा जहाँ अंतराष्ट्रीय महिला दिवस ८ मार्च  को मना रहा है वहीँ सोशल मीडिया पर आई दो खबरों ने सोचने पर मजबूर किया है कि आखिर कमी कहाँ है और बदलाव की ज़रुरत कहाँ है।

पहली खबर की मुस्लिम पर्सनल लॉ के  तीन तलाक़ के विरोध में लामबंद हुई सामाजिक कार्य कत्री । और दूसरी खबर की केरला के जस्टिस कमाल बी पाशा ने कहा की पर्सनल  लॉ के हिसाब से जब मर्द चार शादी कर सकते है तो महिला क्यों  नहीं ?

ये  दोनों ही खबरे अलग अलग किस्म के सवाल पैदा   करती है ।

 पहला सवाल  पर्सनल लॉ किसने और कब तैयार किया?
दूसरा सवाल  इसको तैयार करने में कितने आलिमो की  हिस्सेदारी है
 इसको तैयार करने में कितनी औरतो  की  हिस्सेदारी है
क़ुरान और हदीस के किन किन हिस्सों से सन्दर्भ लिए गए है
पर्सनल लॉ संविधान के सामान ही सामान्य लोगों तक क्यों नहीं पहुँच पाता ये तभी उजागर क्यों होता है जब कोई समस्या आती है और न्याय के नाम पे महिलाओ के लिए नए फतवे आ जाते है

इन सवालो के जवाब  ढूंढे तो पता चलेगा की बहुत काम ही लोग है जिनको इनके बारे में पता होता है । और इसके चक्कर में ज़यादातर वही लोग आते है जो निरक्षर है या फिर पढ़े लिखे तो है लेकिन क़ुरान और हदीस की रौशनी में चीज़ो को उतना ही समझ पाते जितना उन्हें बताया जाता है ।  हज़रत मुहम्मद सलल्लाहो ऐलहे वस्सलम ने फ़रमाया तलिबुल इल्मो फरीजातून अला कुल्ले मुसलमीन  यानि की इल्म की तालब हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है । और इल्म के नाम पर सिर्फ बड़ी किताब यानि के क़ुरान पढ़ा के बेटी बिदा करना  ही मान लिया गया है लेकिन अगर सिर्फ इस किताब को भी मायनों के साथ पढ़ा दिया जाये तो शायद बेटियों को इस तरह के सवालो का सामना ही न करना पड़े। या फिर बहुत सी डिग्रिया हासिल कर ली लेकिन यहाँ भी क़ुरान पढ़ने के नाम पे सिर्फ अरबी में पढाई की ये क़ुरान क्या  कह रहा है इसको  अपनी भाषा में जानने की कोशिश  ही नहीं की।

तलाक़ का डिटेल फिल्म निकाह नहीं बल्कि क़ुरान की सूरह बक़र में है और शादियों का मसला सूरह निसा में है उसी बीवी से फिर से निकाह करने की शर्ते सब क़ुरान में है फिर भी छोटी छोटी बातो के निकाह टूटने का फतवा जारी कर दिया जाता है और लोग उसको मानने लगते।  हर हाल में सवाल औरतो पे ही उठते है कभी फतवे के नाम पे या कभी पर्सनल लॉ के नाम पे।

ज़रूरी है हर सवाल को क़ुरान और हदीस के नज़रिये से परखा जाये फिर उस पर अपने विचार  रखे  जाएँ सिर्फ लाम बंदी करने या फिर चार शादिया कर लेने से औरतें मज़बूत नहीं होंगी उनको पढ़ना होगा सिर्फ  सतही नहीं बल्कि गहराई से जानना होगा की बुनियाद क्या है । लामबंदी करनी है तो जिहालत के खिलाफ करनी होगी  फतवे जारी करने वाले लोगों को क़ुरआन और हदीस का आइना दिखाना होगा तभी हम अपना स्तर सही बना पाएंगे ।