Sunday 27 April 2014

गुड़िया भीतर गुड़िया, मैत्रेय पुष्पा

गुड़िया भीतर गुड़िया


मैत्रेय  पुष्पा की आत्म कथा वास्तव में हर उस महिला और  लड़की की कहानी है जिसने लकीर की फक़ीर बनना नही पसनद किया। कथा शुरआत से अन्त  तक पाठक को बन्धे रहती हैं।  हर अधयाय  अपने में पूर्ण आगे  बढ़ने की प्रेरणा देता हुआ।  सबसे पहले सच्चाई दिखाता वक्तत्व किसी स्त्री को आगे बढ़ने से  रोकने के लिए उसके चरित्र पर ऊँगली उठाना सबसे आसान है और ये काम  उसके सबसे करीबी लोग करते है।  कही पर बेटियों  के अधिकारों के लिए बात करती अपनी पह्चान कि बात करती पुष्पा जी ने हर उस औरत की बात की  है भले ही वह किसी भी छेत्र  मे अपना मक़ाम बना रही हो।


महिला एवं पुरुष के साथ को ग़लत निगाह से देखने  वालों  के सामने भी अपने मित्रता के सम्बन्ध गुरु के सम्बन्ध को अपने नजरिया से देखा कहीँ  भी उन पर रिश्तो की चादर डालने की कोशिश नहीं की।  भले ही २०१२ में प्रकाशित इस पुस्तक में लेखिका ने अपने बचपन के युवा  अवस्था  के कई उधारणो से औरतो की स्थिति को  बताया हो लेकिन हालात  ज़यादा बदले नही है।


विवाहित होते हुए वह घर की सीमाओं में पति के साथ भी अपने कर्त्तव्य ईमानदार कोशीश भी की है।  अंतिम अधयाय से यह भी सबित हो गया कि अपने आप को स्थापित करने के लिए आप को हमेशा ही अग्नि परीक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि आपको पीछे खीचने की लिए इक ज़मात खडी हैं भलें है उस्का संबंद्ध आपसे हो अथवा नहीं।